समझदारी
निर्मल कुमार दे"ज्योति, अब तुम शिक्षिका बन गई। उम्र भी तेईस हो गई, अब तो तुम्हें आपत्ति नहीं है?" अपने दोस्त की बातें सुन ज्योति गंभीर हो गई।
"चुप क्यों हो? कहीं मैं तुम्हे पसंद नहीं या कोई और तुम्हें पसंद है, साफ़-साफ़ आज बता दो," राकेश ने कहा।
दोनों ने एक साथ ग्रेजुएशन किया, एक साल पहले ही बैंक में पीओ के पद पर राकेश की नियुक्ति हो गई थी।
ज्योति की आँखों में आँसू देख राकेश से रहा नहीं गया, ज्योति के हाथों को अपने हाथों में लेकर पूछा, "क्या बात है ज्योति, तुम रो रही हो?"
ज्योति ने आँखें पोंछी और भर्राई आवाज़ में कहा, "राकेश मैं तुम्हारा शुक्रगुज़ार हूँ। तुम्हें पाकर किसे ख़ुशी नहीं होगी? लेकिन अपने मन की व्यथा तुम्हें कैसे बताऊँ?"
"ऐसी कौन सी व्यथा है जो तुम मुझे बता नहीं सकती?" राकेश ने पूछा।
"तुम तो जानते हो राकेश, मेरी किरण दीदी विधवा है। मात्र बाईस साल की उम्र में विधवा हो गई। कोई संतान भी नहीं है।"
"किरण दी जितनी सुंदर है उतनी ही अच्छे स्वभाव की," राकेश ने कहा।
"क्या दीदी की शादी नहीं होनी चाहिए? समाज को आपत्ति होगी?" ज्योति ने जानना चाहा।
"आपत्ति? क्यों आपत्ति होगी?"
"समाज के डर से मेरे माता-पिता राज़ी नहीं हुए एक साल पहले की बात है। उन लोगों को डर है कि दीदी की शादी मेरी शादी में बाधा बनेगी।"
"फ़ालतू डर!"
"क्या दीदी की शादी के बाद हम दोनों शादी करें तो अच्छा नहीं होगा?"
"बिल्कुल अच्छा होगा। मेरी ख़ुशी दुगुनी होगी," राकेश ने अपनी सहमति जताई।
राकेश की बातों से संतोष और ख़ुशी का भाव दिखाई पड़ा ज्योति की आँखों में।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- लघुकथा
-
- अपने हिस्से का आसमान
- असामाजिक
- आँखें
- आत्मा की तृप्ति
- आस्तीन का साँप
- उदासी
- कचरे में मिली लक्ष्मी
- कबीरा खड़ा बाज़ार में
- कमी
- कश्मकश
- गुलाब की ख़ुश्बू
- घोड़े की सवारी
- चिराग़ तले अँधेरा
- चिरैया बिना आँगन सूना
- चेहरे का रंग
- जहाँ चाह वहाँ राह
- जीत
- जुगाड़
- जोश
- ठेकुआ
- डस्टबिन
- डाकिया
- तक़दीर
- दर्द
- दाँव
- दीये का मोल
- दो टूक बात
- धिक्कार
- धूप और बारिश
- धृतराष्ट्र अभी भी ज़िन्दा है
- नई दिशा
- नहीं
- नास्तिक
- नीम तले
- नीम हकीम ख़तरा-ए-जान
- पहचान
- पहली पगार
- पुरानी किताबें
- पुश्तैनी पेशा
- प्याजी
- प्यासा पनघट
- बदलाव
- बरकत
- बहू
- बहू की भूमिका
- बुड़बक
- ब्लड प्रेशर
- भीख
- भेदभाव
- महँगाई मार गई
- माँ की भूमिका
- मैं ज़िन्दा नहीं हूँ
- रँगा सियार
- लड़ाई
- लेटर बॉक्स
- विकल्प
- संवेदना
- सतरंगी छटा
- सपने
- सफलता का राज़
- समझदारी
- सम्बन्ध
- सम्मान
- सर्दी
- सर्वनाश
- सुकून
- सौ रुपए की सब्ज़ी
- हैप्पी दिवाली
- ख़ुद्दारी
- फ़र्क़
- कविता
-
- अन्याय का प्रतिरोध
- अरुण यह मधुमय देश हमारा
- आत्मग्लानि
- आसमानी क़िला
- आज़ादी
- कायर
- किराए का टट्टू
- चौराहा
- जनतंत्र के प्रहरी
- जिजीविषा
- जीना इसी का नाम है
- तुम नहीं आए
- तुम्हारा ख़त
- तेरा प्रतिबिंब
- पहली मुहब्बत
- मधुमास
- माँ
- वर्ण पिरामिड
- विडम्बना
- शुभ दीपावली
- सरस सावन
- साथ-साथ
- सावन की घटा
- सफ़र मेरा सुहाना हो गया
- क़लम और स्याही
- ख़ुश्बू पसीने की
- कविता - क्षणिका
- अनूदित कविता
- कविता - हाइकु
- हास्य-व्यंग्य कविता
- कविता-मुक्तक
- किशोर साहित्य लघुकथा
- कहानी
- सांस्कृतिक आलेख
- ऐतिहासिक
- रचना समीक्षा
- ललित कला
- कविता-सेदोका
- साहित्यिक आलेख
- विडियो
-
- ऑडियो
-