सतरंगी छटा
निर्मल कुमार दे“हैलो गोपाल! क्या कर रहे हो?“ सात साल के शुभम ने अपने ममेरे भाई से पूछा।
“कल तुमने फूलों पर मँडराती तितलियों का जो चित्र बनाया था उसे आज बग़ीचे में देख रहा हूँ,” गोपाल ने जवाब दिया।
“सच? अपने फ़्लैट में न फूल न तितली और तो और न सुबह की धूप! सिर्फ़ वीडियो में देखता हूँ ये सारी चीज़ें।”
“तुम गाँव मेरे यहाँ आ जाओ। अभी ठंडे मौसम में ख़ूब मज़ा आयेगा। हमलोग पिकनिक जाने की सोच रहे हैं।”
“तब तो बड़ा मज़ा आयेगा। मम्मी और पापा तो अपने ऑफिस में बिज़ी रहते हैं। बग़ल के बच्चे भी आजकल घर में ही रहते हैं। खेलने भी नहीं आते,” शुभम ने शिकायती लहज़े में कहा।
“मम्मी कहती हैं कि शहर के लोग अपने पड़ोसी के नाम तक नहीं जानते। हम गाँव में किसी के भी यहाँ चले जाएँ चेहरा देख ही कह देंगे हम किनके बेटे हैं।”
“वाह! तब तो शहर से गाँव ही अच्छा है।”
“लेकिन पापा कहते हैं कि गाँव सिमटता जा रहा है। लोग शहर की ओर भाग रहे हैं।”
“तब तो गाँव से भी हरियाली ग़ायब हो जायेगी,” शुभम ने चिंता जताई।
“नहीं शुभम! हम लोग बड़े होकर कुछ करेंगे न,” गोपाल ने जवाब दिया।
’आजकल के बच्चे कितने होशियार हो गए हैं। ’ मोबाइल पर दो बच्चों की बातें सुन रहे थे गोपाल के दादाजी।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- लघुकथा
-
- अपने हिस्से का आसमान
- असामाजिक
- आँखें
- आत्मा की तृप्ति
- आस्तीन का साँप
- उदासी
- कचरे में मिली लक्ष्मी
- कबीरा खड़ा बाज़ार में
- कमी
- कश्मकश
- गुलाब की ख़ुश्बू
- घोड़े की सवारी
- चिराग़ तले अँधेरा
- चिरैया बिना आँगन सूना
- चेहरे का रंग
- जहाँ चाह वहाँ राह
- जीत
- जुगाड़
- जोश
- ठेकुआ
- डस्टबिन
- डाकिया
- तक़दीर
- दर्द
- दाँव
- दीये का मोल
- दो टूक बात
- धिक्कार
- धूप और बारिश
- धृतराष्ट्र अभी भी ज़िन्दा है
- नई दिशा
- नहीं
- नास्तिक
- नीम तले
- नीम हकीम ख़तरा-ए-जान
- पहचान
- पहली पगार
- पुरानी किताबें
- पुश्तैनी पेशा
- प्याजी
- प्यासा पनघट
- बदलाव
- बरकत
- बहू
- बहू की भूमिका
- बुड़बक
- ब्लड प्रेशर
- भीख
- भेदभाव
- महँगाई मार गई
- माँ की भूमिका
- मैं ज़िन्दा नहीं हूँ
- रँगा सियार
- लड़ाई
- लेटर बॉक्स
- विकल्प
- संवेदना
- सतरंगी छटा
- सपने
- सफलता का राज़
- समझदारी
- सम्बन्ध
- सम्मान
- सर्दी
- सर्वनाश
- सुकून
- सौ रुपए की सब्ज़ी
- हैप्पी दिवाली
- ख़ुद्दारी
- फ़र्क़
- कविता
-
- अन्याय का प्रतिरोध
- अरुण यह मधुमय देश हमारा
- आत्मग्लानि
- आसमानी क़िला
- आज़ादी
- कायर
- किराए का टट्टू
- चौराहा
- जनतंत्र के प्रहरी
- जिजीविषा
- जीना इसी का नाम है
- तुम नहीं आए
- तुम्हारा ख़त
- तेरा प्रतिबिंब
- पहली मुहब्बत
- मधुमास
- माँ
- वर्ण पिरामिड
- विडम्बना
- शुभ दीपावली
- सरस सावन
- साथ-साथ
- सावन की घटा
- सफ़र मेरा सुहाना हो गया
- क़लम और स्याही
- ख़ुश्बू पसीने की
- कविता - क्षणिका
- अनूदित कविता
- कविता - हाइकु
- हास्य-व्यंग्य कविता
- कविता-मुक्तक
- किशोर साहित्य लघुकथा
- कहानी
- सांस्कृतिक आलेख
- ऐतिहासिक
- रचना समीक्षा
- ललित कला
- कविता-सेदोका
- साहित्यिक आलेख
- विडियो
-
- ऑडियो
-