सत्ता की ग़ुलामी

15-01-2023

सत्ता की ग़ुलामी

निर्मल कुमार दे (अंक: 221, जनवरी द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

कवि मंच पर चिल्ला रहे थे
पार्टी का गुण गान कर रहे थे
पता नहीं कितने पैसे मिले थे
दिन को रात कह रहे थे
 
दर्शक भी ताली पीट रहे थे
आयोजक जो इशारा कर रहे थे। 
बाँटी जा रही थी पकौड़ियाँ
साथ में चाय कॉफ़ी मुफ़्त
 
गुफ़्तुगू कर रहे थे लोग
चुनाव की हो रही तैयारियाँ
नजरंदाज किए जा रहे थे कुछ कवि
नहीं आता था उन्हें मक्खन लगाना
 
आजकल सब कुछ बिकता है
चौक पर कबीरा कह रहे थे
लेखनी अब कहाँ है आज़ाद
कवि जी सत्ता की ग़ुलामी कर रहे थे। 

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