जोश

निर्मल कुमार दे (अंक: 236, सितम्बर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

स्कूल में चल रहे सांस्कृतिक कार्यक्रम में देशप्रेम पर गीत संगीत सुनकर संध्या देवी भी जोश से लबरेज़ हो गई। अपनी बहू को कहा, “बेटा, मैं भी इस कार्यक्रम में अपना गीत प्रस्तुत करना चाहती हूँ। क्या मुझे मौक़ा मिलेगा?” 

सासू माँ की बातें सुन बहू ने कहा, “माँ जी, स्वतंत्रता के पचहत्तर वर्ष के उपलक्ष्य में विशेष कार्यक्रम है। सभी आमंत्रित हैं और कोई भी भाग ले सकता है। लेकिन . . .” 

 “लेकिन क्या बहू?” 

“आपकी उम्र सत्तर साल, आप गीत गा पाएँगी?” 

“बेटा, देशप्रेम के गीत सुनकर मैं बिल्कुल जवान हो जाती हूँ। बचपन में ख़ूब गीत गाती थी और नाचती भी थी। 

“आप क्या गाएँगी?” 

“मैं झंडे के साथ शंख बजा कर अपना गीत प्रस्तुत करूँगी। तुम भी आओ।”

बहू ने कहा, “आपका देशप्रेम और जोश देख आश्चर्य होता है। चलिए, आपके पीछे मैं भी आती हूँ।”

संध्या देवी अपने साथ तिरंगा झंडा और शंख लेकर स्कूल की ओर चल पड़ी। 

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