नेताजी की चुनौती 

15-01-2025

नेताजी की चुनौती 

निर्मल कुमार दे (अंक: 269, जनवरी द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

काँप उठी अंग्रेज़ी हुकूमत
जय हिन्द के तुमुल नारों से
शेर की दहाड़ सुन
ख़ून जम गया बर्फ़-सा
अंग्रेज़ अब समझ गए
दिन लद गए राज करने के। 
 
शहीदों की शहादत
वीरों का पराक्रम
आज़ादी की लड़ाई
अब रंग दिखाने लगी है
भारतीय ख़ून में उबाल आ चुका है
नेताजी की चुनौती, 
अब अँग्रेज़ों को बहुत भारी लगने लगी है। 
नेताजी ने ललकारा है
ख़त्म हो फिरंगी सत्ता
भारत देश हमारा है। 
स्वराज हमारा नारा है। 
तुम मुझे ख़ून दो
मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा
नेताजी ने युद्ध की बिगुल फूँक दिया
टूटने लगी ग़ुलामी की ज़ंजीरें
स्वतंत्र भारत का सपना
सच होता है दिख रहा। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ऐतिहासिक
कविता
कविता - हाइकु
लघुकथा
कविता - क्षणिका
अनूदित कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता-मुक्तक
किशोर साहित्य लघुकथा
कहानी
सांस्कृतिक आलेख
रचना समीक्षा
ललित कला
कविता-सेदोका
साहित्यिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में