दाँव

निर्मल कुमार दे (अंक: 240, नवम्बर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

“ख़बरदार!” पति के हाथ से बकरी को छुड़ाते हुए पत्नी गरज उठी। 

“साले। सब कुछ गँवा दिए जुए और शराब में। अब बकरी को भी बेचना . . .”

“भूल गए इसी बकरी के जन्मे खस्सी के पैसे से तुम्हारा इलाज कराया था जब तुम मौत के के मुँह के क़रीब पहु़ँच गए थे।

“मैं किसी भी क़ीमत पर जुआ खेलने के लिए तुम्हें बकरी बेचने नहीं दूँगी!” पत्नी ग़ुस्से में थी।

“पांडवों ने तो अपनी पत्नी . . .”

पत्नी ने उसे आगे बोलने तक का मौक़ा नहीं दिया और पास में पड़ी हँसिया उठा ली। 

“देखते हो! नीच! मुझे दाँव पर लगाने की सोचना भी नहीं।” 

शराबी पति के होश ठिकाने आ गए। 

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