मधुमास

निर्मल कुमार दे (अंक: 247, फरवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

कितनी अच्छी लगती हैं
ये रंग बिरंगी तितलियाँ
फूल-फूल मँडराती हैं
आँखों को देती हैं सुकून
सुषमा अपनी बिखेरती हैं। 
बड़ी अच्छी लगती नदियाँ झीलें 
पर्वत भी लगते मोहक। 
चतुर्दिक फैली हरियाली 
अपूर्व छटा, मन मोहक दृश्य
पीले फूलों से सजे खेत
मानों 
सरसों ने फैला दी है साड़ी
किसी अल्हड़ मुग्धा की। 
बह रही बसंती हवा
घुल रही है मादकता
पीला अमलतास
लाल लाल पलाश
नीला आकाश
फिर भी क्यों उदास। 
सुनो आहट
फागुन की, 
आ रहा मधुमास। 
प्रेम प्रीत की बहार
सिले होंठ
आँखों में प्रणय
मन में है हिलोरें
गुलाबी हैं गाल
हाथ में गुलाल
चलो, मना लो होली
रंगीन हो जाए
मन का आकाश। 

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