पहली मुहब्बत

01-04-2023

पहली मुहब्बत

निर्मल कुमार दे (अंक: 226, अप्रैल प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

कविता! 
तुम मेरी पहली मुहब्बत हो
मेरी पहचान भी। 
जब जब रोया
तुम भी रोई
जब मुस्कुराया
तुम मुग्धा-सी मुस्कुराई।  
 
देख पीर पराई
तुम्हें भी विचलित होते देखा
अन्याय अनाचार के ख़िलाफ़
शेरनी बन दहाड़ते देखा; 
दबंगों के अत्याचार से
जब मानवता भी दबती गई
तुम नई ताक़त के साथ
उठ खड़ी हुई
हुंकार भरी। 
 
कभी दिनकर कभी निराला
तो कभी प्रसाद का स्मरण दिलाया
धूमिल के पद चिह्नों पर चलने 
तुमने मुझे प्रण दिलवाया। 
 
हैं कठिन दिन
चतुर्दिक अंधकार छाया
आओ प्रेयसी
मिलकर जलाते हैं
एक दीया नया। 
कविता
तुम मेरी पहली मुहब्बत हो
मेरी पहचान भी। 

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