सही निर्णय
निर्मल कुमार देरश्मि की शादी लगभग तय हो चुकी थी। दोनों पक्ष एक दूसरे के यहाँ कई बार आ चुके थे। रश्मि के पिताजी ने एक बड़ी कम्पनी में सीईओ के पद पर कार्यरत लड़के को अपना दामाद बनाने के लिए एड़ी चोटी एक कर दी थी।
दोनों के ख़ानदान में कोई कमी नहीं थी। सिर्फ़ लड़के को आकर लड़की देखना बाक़ी था।
दीपावली में लड़का घर आने वाला था। दोनों पक्षों की रज़ामंदी से दीपावली के दूसरे दिन लड़का अपने एक दोस्त के साथ लड़की के घर पहुँचा।
पच्चीस साल की ख़ूबसूरत रश्मि की अभिरुचि कविता और पेंटिंग्स में थी। एम.ए. करने के बाद लेक्चरर बनने की तैयारी कर रही थी। माता-पिता की बात टाल नहीं पाई थी और शादी के लिए राज़ी हो गई थी।
राकेश अपने एक दोस्त राजीव के साथ रश्मि के यहाँ पहुँचा। रश्मि के माता-पिता, मामा-मामी और मामा के लड़के सुबह से ही राकेश के स्वागत की तैयारियों में लगे हुए थे।
नाश्ता आदि हो जाने के बाद दोनों दोस्त रश्मि को देखने-सुनने का इंतज़ार कर रहे थे।
मामी के साथ रश्मि आई। रश्मि की सुंदरता देख राकेश से ज़्यादा ख़ुशी राजीव को हुई। राजीव ने रश्मि से दो-चार प्रश्न किए। रश्मि ने प्रश्नों का जवाब दिया। राकेश ने भी सिर्फ़ ’कब एम.ए. पास की’ ही पूछा।
राकेश के इस ठंडेपन से मामी को थोड़ा खराब भी लगा।
राजीव ने रश्मि से उसकी अभिरुचि और शौक़ के बारे में पूछा। पढ़ने-लिखने में अभिरुचि और पेंटिंग्स का शौक़ कहने पर राजीव ने कुछ पेंटिंग्स और रश्मि की लिखी कविता देखने की इच्छा व्यक्त की। रश्मि की मामी ने उसकी लिखी कविता की कॉपी और कुछ पेंटिंग्स लाकर दे दीं।
राकेश अपने आई-पैड में आँखें गड़ाए हुए बैठा रहा। कविता और पेंटिंग्स देखकर राजीव ने रश्मि की प्रशंसा की, "वाह बहुत सुंदर। आपकी हर पेंटिंग लाजवाब है। पेपर, मैगज़ीन में अपनी कविता नहीं भेजती हैं आप रश्मिजी?"
"जी, एक दो कविताएँ छपी हैं। कॉलेज मैगज़ीन में भी छपी हैं," रश्मि ने कहा।
रश्मि की मधुर आवाज़ सुन राजीव ने मन ही मन सोचा कि राकेश बहुत ही भाग्यशाली है जो रश्मि जैसी लड़की उसकी पत्नी बनेगी।
इतनी बातें होती रहीं परन्तु राकेश का इस ओर कोई ध्यान नहीं गया।
कुछ मिनटों के बाद राजीव ने ही अपने दोस्त राकेश से पूछा, "क्या राकेश और कुछ जानना है?"
"नहीं ठीक है, अब चलो।"
"अंकल अब हम लोग चलते हैं। फोन से राकेश के पिताजी से बात कर लेंगे आप," कहते हुए राजीव ने रश्मि के पिताजी से विदा ली।
दोनों दोस्त बाइक से निकल गए।
उस रात रश्मि से पाँच साल बड़ी मामी ने रश्मि से उसके कमरे में बात शुरू की।
मामी ने पूछा, "कैसा लगा लड़का रश्मि?"
रश्मि चुप रही।
रश्मि की चुप्पी से मामी की धड़कन बढ़ गई।
मामी ने कुरेदा, "क्या हुआ रश्मि? मैं तो तुम्हारी मामी हूँ और दोस्त जैसी भी। कोई बात है तो बोलो?"
मामी के दुबारा पूछने पर रश्मि ने जवाब दिया, "मामी, राकेश मुझे पसंद नहीं है। वह एक सफल सीईओ हो सकता है, पर सफल पति नहीं। उनका ऐटिट्यूड देखा आपने? पहली बार मिलने पर जब इतनी अनदेखी तो आगे क्या हो सकता है, आप ही बताएँ।"
मामी ने भी कहा, "मुझे भी उनकी बेरुख़ी पसंद नहीं आई।"
रश्मि ने कहा, "मेरे जवाब से कहीं मम्मी पापा टूट तो नहीं जाएँगे?"
मामी ने समझाया, "भय तो हमें भी लगता है, लेकिन तुम्हारी नापसंदगी के ठोस कारण भी तो हैं। इंदिरा दी और भैयाजी को मना लूँगी लेकिन पास-पड़ोस के लोग तुम्हारे ख़िलाफ़ बोलेंगे!"
रश्मि ने दृढ़ता से कहा, "मामी, ज़िंदगी मेरी है, पास-पड़ोस वालों की नहीं। वैसे भी आजकल पास-पड़ोस वाले कितने शुभ चिंतक होते हैं!"
मामी ने कुछ सोचते हुए पूछा, "अच्छा बताओ, तुम लेक्चरर बन सकती हो?"
रश्मि ने आत्मविश्वास से उत्तर दिया, "बिल्कुल बन सकती हूँ, अभी मेरी उम्र पच्चीस साल है। दो-तीन साल में मैं लेक्चरर बन जाऊँगी। लेक्चरर बनने के बाद ही मैं शादी करूँगी।"
मामी ने कहा, "ठीक है, सुबह तुम्हारी राय तुम्हारे पापा को मैं ही सुना दूँगी। लेकिन राकेश के पिताजी को कैसे बताया जाय?"
रश्मि ने सोचते हुए कहा, "पहले देख लीजिए ना मामी उधर से क्या संदेश आता है। अगर जवाब ही देना है तो कह देना है कि रश्मि अभी शादी के लिए तैयार नहीं है, वह आगे पढ़ना चाहती है।"
मामी की चिंता के बादल छँट गए, "वाह तुम्हारी शिक्षा, समझदारी और इंटेलिजेंस की दाद देनी पड़ेगी।"
मामी के बताए जाने पर रश्मि के माता-पिता और मामा भी रश्मि की राय से सहमत हो गए।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- लघुकथा
-
- अपने हिस्से का आसमान
- असामाजिक
- आँखें
- आत्मा की तृप्ति
- आस्तीन का साँप
- उदासी
- कचरे में मिली लक्ष्मी
- कबीरा खड़ा बाज़ार में
- कमी
- कश्मकश
- गुलाब की ख़ुश्बू
- घोड़े की सवारी
- चिराग़ तले अँधेरा
- चिरैया बिना आँगन सूना
- चेहरे का रंग
- जहाँ चाह वहाँ राह
- जीत
- जुगाड़
- जोश
- ठेकुआ
- डस्टबिन
- डाकिया
- तक़दीर
- दर्द
- दाँव
- दीये का मोल
- दो टूक बात
- धिक्कार
- धूप और बारिश
- धृतराष्ट्र अभी भी ज़िन्दा है
- नई दिशा
- नहीं
- नास्तिक
- नीम तले
- नीम हकीम ख़तरा-ए-जान
- पहचान
- पहली पगार
- पुरानी किताबें
- पुश्तैनी पेशा
- प्याजी
- प्यासा पनघट
- बदलाव
- बरकत
- बहू
- बहू की भूमिका
- बुड़बक
- ब्लड प्रेशर
- भीख
- भेदभाव
- महँगाई मार गई
- माँ की भूमिका
- मैं ज़िन्दा नहीं हूँ
- रँगा सियार
- लड़ाई
- लेटर बॉक्स
- विकल्प
- शुक्रगुज़ार
- संवेदना
- सतरंगी छटा
- सपने
- सफलता का राज़
- समझदारी
- सम्बन्ध
- सम्मान
- सर्दी
- सर्वनाश
- सुकून
- सौ रुपए की सब्ज़ी
- हैप्पी दिवाली
- ख़ुद्दारी
- फ़र्क़
- कविता - हाइकु
- कविता
-
- अन्याय का प्रतिरोध
- अरुण यह मधुमय देश हमारा
- आत्मग्लानि
- आसमानी क़िला
- आज़ादी
- कायर
- किराए का टट्टू
- चौराहा
- जनतंत्र के प्रहरी
- जिजीविषा
- जीना इसी का नाम है
- तुम नहीं आए
- तुम्हारा ख़त
- तेरा प्रतिबिंब
- पहली मुहब्बत
- मधुमास
- माँ
- वर्ण पिरामिड
- विडम्बना
- शुभ दीपावली
- सरस सावन
- साथ-साथ
- सावन की घटा
- सफ़र मेरा सुहाना हो गया
- क़लम और स्याही
- ख़ुश्बू पसीने की
- कविता - क्षणिका
- अनूदित कविता
- हास्य-व्यंग्य कविता
- कविता-मुक्तक
- किशोर साहित्य लघुकथा
- कहानी
- सांस्कृतिक आलेख
- ऐतिहासिक
- रचना समीक्षा
- ललित कला
- कविता-सेदोका
- साहित्यिक आलेख
- विडियो
-
- ऑडियो
-