माँ की भूमिका
निर्मल कुमार देइंटर पास सुभद्रा ने पति की सहमति से शहर के नॉर्थ कॉलोनी में चार घरों में मौसी उर्फ़ कुक का काम करना शुरू कर दिया। पति की कमाई से एकमात्र बेटे की पढ़ाई और घर गृहस्थी चलाना संभव नहीं हो रहा था।
अभी तीन महीने काम किया ही था कि पति बीमार पड़ गया और लॉक डाउन भी लग गया।
अब क्या करे सुभद्रा? पति की देखभाल करना ज़रूरी था, कैसे काम पर जाएगी? सास घर-गृहस्थी के छोटे-मोटे काम के साथ पोते की भी देखरेख करती थीं।
मास्क लगाकर ही वह कॉलोनी के उस घर में गई जिसमें दो भाई रहते थे, बहुत ही अच्छे स्वभाव के थे दोनों और उसे मौसी से ज़्यादा सम्मान भी देते थे।
कॉल बेल दबाते ही छोटे भाई ने दरवाज़ा खोला। सुभद्रा के चेहरे पर परेशानी के भाव देख उसने पूछा, "क्या बात है मौसी, परेशान नजर आती हैं?"
"बाबू, मेरे पति बीमार हैं अगले कुछ दिनों तक काम करने नहीं आ पाऊँगी। महीना पूरे महीने में चार दिन बाक़ी हैं। अगर कुछ रुपए काटकर पगार दे देते तो अच्छा होता।"
मौसी की बातें सुन अंकित बाबू ने कहा, "मौसी,अंकल की तबीयत ठीक नहीं होने से कुछ दिन आप नहीं आ पाएँगी, यही न; मैं पूरे महीने की पगार और एक महीने की अग्रिम आपको देता हूँ। अंकल का इलाज करा लेना, और जब अंकल ठीक हो जाएँ तो फिर काम पर आ जाना।"
मौसी की आँखें आँसुओं से भर गईं।
अंकित बाबू ने पाँच हज़ार रुपए मौसी को देते हुए कहा, "मौसी आपके हाथों बनाए खाने में घर का स्वाद मिल जाता है।"
"बाबू मैं भी संतुष्ट हूँ आप दोनों भाइयों को मेरे हाथों बना खाना पसंद है।"
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