कल्याणी

निर्मल कुमार दे (अंक: 238, अक्टूबर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

बांग्ला भाषा की चर्चित लेखिका- तसलीमा नसरीन
हिंदी अनुवाद – निर्मल कुमार दे

 
कल्याणी को उठाकर ले गए हैं
बलात
कुछ दबंग; 
घर पर पड़ी हुई है
साड़ी
कल्याणी की, 
अस्त-व्यस्त बिस्तर और तकिया, 
टूटी चूड़ियाँ, 
फ़र्श पर ख़ून के धब्बे, 
कई जोड़े जूतों के निशान, 
जली हुई सिगरेट के टुकड़े। 
कहाँ होगी कल्याणी? 
किसी निर्जन 
सुनसान जगह में 
पड़ी होगी उसकी नंगी लाश
आवारा कुत्ते
और गिद्धों के झुंड
नोचते होंगे
मांस के लोथड़े। 
नज़र पड़ने पर
लोग कहेंगे
बड़ी अच्छी थी कल्याणी
सीधी गाय-सरीखी
शर्मीली। 
अगर क्षत विक्षत शरीर लेकर
 रौंदी हुई, नोंची हुई हालत में
आती कल्याणी अपने दरवाज़े पर 
किसी तरह बचकर, 
उसकी माँ, अपने क़रीबी या पड़ोसी
उसे अपनाते, उसके ज़ख़्मों को सहलाते? 
या कुटिल हँसी
चुभती बातों
तिर्यक कमेंट्स से
होती परेशान बेचारी कल्याणी? 
बड़ी शैतान थी, 
बदचलन भी! 
बन सँवर कर रहती थी
सीने से हट जाती थी साड़ी
दोहरी हो जाती थी
जब हँसती थी
क्यों उसके साथ यह घटना घटी? 
ज़रूर कमी उसमें ही थी! 

निर्मल कुमार डे
जमशेदपुर

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

लघुकथा
कविता
कविता - हाइकु
कविता - क्षणिका
अनूदित कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता-मुक्तक
किशोर साहित्य लघुकथा
कहानी
सांस्कृतिक आलेख
ऐतिहासिक
रचना समीक्षा
ललित कला
कविता-सेदोका
साहित्यिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में