नीम हकीम ख़तरा-ए-जान

15-08-2023

नीम हकीम ख़तरा-ए-जान

निर्मल कुमार दे (अंक: 235, अगस्त द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

डॉक्टर के चैंबर के बाहर असगर बेचैनी से अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा था। पर्ची लिखने वाले ने आवाज़ लगाई, “मुराद।” 

असगर तेज़ी से अपने सात साल के बेटे मुराद को लेकर चैंबर के अंदर गया। 

“डॉक्टर साब! मेरा बेटा सात दिन से बुख़ार से . . .”

“सात दिन से बुख़ार है बच्चे को और आज लाए हो! कोई दवा दी है?” 

“डॉक्टर साब, दवाई दुकान से दवा ख़रीद कर दी है लेकिन बुख़ार कम ही नहीं होता है या बुख़ार थोड़ी देर के लिए कम होता है, फिर जस का तस।”

“मतलब ख़ुद हकीम बन गए.” डॉक्टर के चेहरे पर ग़ुस्सा साफ़ झलक रही थी। 

डॉक्टर ने बच्चे को अच्छी तरह से देखा, हालत नाज़ुक थी। 

“इसे एडमिट करना होगा।”

“जी . . .” असगर के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रहीं थीं। 

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