ख़ुद्दारी 

01-08-2023

ख़ुद्दारी 

निर्मल कुमार दे (अंक: 234, अगस्त प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

“मधु! आज मैं तुम्हारे निर्णय को ही प्राथमिकता दूँगा। पापा अस्पताल में भर्ती हैं। उनके इलाज के लिए मुझे बैंक में जमा एफडी तोड़नी है।”

“यह तुम क्या कहते हो। कितने कष्ट से हम दोनों ने पैसे जमाकर भविष्य में मुन्ने की पढ़ाई के लिए एफडी खोली है और तुम . . .”

"मुन्ने की पढ़ाई के लिए धीरे-धीरे रुपये जमा कर लूँगा लेकिन इलाज के बग़ैर पिताजी अगर . . .” दीपक की आँखों में पानी भर आया। “आज माँ जीवित होती तो . . .!”

“अरे रुको, मुझे मालूम है जब तुम तीन-चार साल के थे और गीता दीदी छह साल की तभी मम्मी जी की मृत्यु हो गई थी बीमारी से। तुम्हारे बक्से में रखा वह स्केच गवाह है तुम्हारे पिताजी ने कैसे तुम दोनों भाई-बहन की परवरिश की थी। मुझे भी एक ख़ुद्दार पति की पत्नी की भूमिका निभानी है। मुझे कोई आपत्ति नहीं।”

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

लघुकथा
कविता
कविता - क्षणिका
अनूदित कविता
कविता - हाइकु
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता-मुक्तक
किशोर साहित्य लघुकथा
कहानी
सांस्कृतिक आलेख
ऐतिहासिक
रचना समीक्षा
ललित कला
कविता-सेदोका
साहित्यिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में