ख़ुश्बू पसीने की

15-05-2024

ख़ुश्बू पसीने की

निर्मल कुमार दे (अंक: 253, मई द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

एक आलीशान मकान के सामने
मज़दूर एक खड़ा
चालीस साल पहले की बात
सोच रहा बेचारा
मैंने महीनों काम किया है 
कड़ी धूप और बारिश में
और भी मज़दूर थे साथ मेरे
पच्चीस थी उम्र मेरी
आज पैंसठ में लाचार बूढ़ा
आँखों में ज्योति कम 
शरीर में नहीं रहा दम
मालिक इस मकान का
अस्सी साल का होगा
फ़ुर्तीला नौजवान-सा
फियेट से उतरते देखा
सामने खड़े बूढ़े को
भिखारी समझ मालिक ने
पाँच का एक सिक्का थमा दिया
कुछ कहता बूढ़ा पर
मालिक को क्या पता 
किसके पसीने की ख़ुश्बू से
उसका यह मकान खड़ा। 

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