लड़ाई

निर्मल कुमार दे (अंक: 215, अक्टूबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

दुर्गा मंदिर में मूर्तिकार मूर्तियों में रंग भर रहे थे। आज भी तीन बच्चे हाज़िर थे, मूर्ति देखने। मूर्तिकार अपने काम में व्यस्त थे लेकिन उनके कान खड़े थे। आठ-दस साल के बच्चे आपस में बातें कर रहे थे। 

“देखो असुर कितना बलवान दिखता है,” पहला बच्चा बोला। 

“और भयंकर भी . . .!” दूसरे बच्चे ने कहा। 

”माँ दुर्गा असुर को पराजित कर सकेगी? अकेली है!” पहले बच्चे ने चिंता जताई। 

“अकेली नहीं है माँ दुर्गा। देखो शेर भी असुर पर धावा बोलने वाला है ओर साँप भी फुंफकार रहा है,” दूसरे बच्चे ने कहा। 

“माँ दुर्गा ने त्रिशूल असुर के सीने में धँसा दिया है। असुर की मौत निश्चित है,” तीसरे बच्चे ने कहा। 

“काश अंकिता को भी किसी का साथ मिला होता!” दूसरे बच्चे ने आह भरते हुए कहा। 

“कौन अंकिता?” तीसरे बच्चे ने सवाल किया। 

“दो-दो अंकिता! दरिंदों ने जान ले ली दोनों अंकिता की। मम्मी बोल रही थी औरत को कमज़ोर पाकर दरिंदों ने मार दिया,” दूसरे बच्चे ने कहा। 

“अंकिता को माँ दुर्गा के समान लड़ना चाहिए था,” पहले बच्चे ने कहा। 

“ज़रूर लड़ी होगी, लेकिन किसी का साथ नहीं मिला होगा!” दूसरे बच्चे ने कहा। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

लघुकथा
कविता
कविता - क्षणिका
अनूदित कविता
कविता - हाइकु
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता-मुक्तक
किशोर साहित्य लघुकथा
कहानी
सांस्कृतिक आलेख
ऐतिहासिक
रचना समीक्षा
ललित कला
कविता-सेदोका
साहित्यिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में