पुरानी किताबें

15-11-2021

पुरानी किताबें

निर्मल कुमार दे (अंक: 193, नवम्बर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

"आइए साहब, बरसों बाद आपके दर्शन हुए," रिटायर्ड प्रोफ़ेसर  को अपनी दुकान पर आते देख नौशाद ने कहा।

"अरे आपने तो किताब की अच्छी दुकान खड़ी कर दी।"

"आपके मार्गदर्शन से यह संभव हुआ सर।"

"आपकी ईमानदारी और मेहनत का वज़ीफ़ा है नौशाद भाई। आपने बाइंडिग  का काम छोड़ दिया?"

"नहीं सर, दो जून रोटी के लिए इस पेशे से ही अपना सफ़र शुरू किया था। बग़ल में बाइंडिंग का काम भी होता है। एक सहायक भी रख लिया है।"

"वाह! वेरी नाइस!"

सर आपने ही पुरानी किताबों की ख़रीद-बिक्री की सलाह दी थी। शहर के नामी पब्लिक स्कूलों  की किताबें ख़ूब बिकती है आधे दाम पर। और तीस प्रतिशत दाम पर मैं पुरानी किताबें ख़रीदता हूँ।"

"और सामने रैक पर तो ये मोटी-मोटी किताबें तो स्कूल के कोर्स की नहीं है?"

"सर! अब मुझे किताबों से बहुत प्यार हो गया है। ये किताबें कबाड़ीवालों से ख़रीदी हैं। आप ख़ुद देख लें कितने बड़े-बड़े लेखकों की किताबें हैं। लोगों ने किलो के भाव से बेच दी हैं।"

प्रोफ़ेसर राव ने किताबें देखकर कहा, "बहुत नेक काम कर रहे हो नौशाद भाई। आपने किताबों की इज़्ज़त और क़ीमत समझी।"

"इन किताबों ने मेरी ज़िंदगी बदल दी सर। मेरा बेटा पुरानी किताबें पढ़कर ही आज शिक्षक  की नौकरी में है।"

बहुत ख़ूब नौशाद भाई। दुकान के सामने एक सूचना बोर्ड टाँग दो,यहाँ पुरानी किताबें ख़रीदी और बेची जाती है।"

"सर,मेरा तज़ुर्बा बताता है किताबें कभी बेकार नहीं होतीं।"

"बिल्कुल सही कहा आपने नौशाद भाई," प्रोफ़ेसर राव किताबों की दुनिया में खो गए।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

लघुकथा
कविता
कविता - हाइकु
कविता - क्षणिका
अनूदित कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता-मुक्तक
किशोर साहित्य लघुकथा
कहानी
सांस्कृतिक आलेख
ऐतिहासिक
रचना समीक्षा
ललित कला
कविता-सेदोका
साहित्यिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में