रवि की छाया

15-05-2024

रवि की छाया

निर्मल कुमार दे (अंक: 253, मई द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

मूल कविता शीर्षक: रवींद्रनाथ तुमि
मूल लेखक: सुखेंदु दास (बांग्ला) 
अनुवादक: निर्मल कुमार दे

 

सुबह शाम
दिन रात
हर पल
मेरे सीने के अंदर
अविरत है आपकी चहलक़दमी
किसी और को 
स्वीकार नहीं मेरे मन को
लोग कहते हैं
मैं अतीत के सम्मोहन से
पीड़ित हूँ
इसीलिए तो मेरी यह दशा है। 
लेकिन क्या यही सच है
नहीं, बिलकुल भी नहीं। 
हमारी समस्त वेदना में
हमारे प्यार और श्रद्धा की गहराई में
आप हो मौजूद
ठीक उसी प्रकार
जैसे आकाश और धरा 
वृक्ष और मिट्टी 
बाती और रोशनी
‘जोड़ासांको’ और जीवन
अविच्छेद्य 
एक ही सत्ता 
ब्रह्म यहाँ निराकार
मानो बिलकुल 
हो गया हो विलीन उपनिषद के साथ। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

लघुकथा
कविता
कविता - क्षणिका
अनूदित कविता
कविता - हाइकु
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता-मुक्तक
किशोर साहित्य लघुकथा
कहानी
सांस्कृतिक आलेख
ऐतिहासिक
रचना समीक्षा
ललित कला
कविता-सेदोका
साहित्यिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में