आस्तीन का साँप
निर्मल कुमार देविवाह मंडप घर पर ही बनाया गया था लेकिन बारातियों के ठहरने की व्यवस्था लगभग पौने किलोमीटर दूर एक धर्मशाला में की गई थी।
दोनों जगह की सजावट और व्यवस्था में कोई कमी नहीं थी।
नाश्ता पानी के बाद बैंड-बाजे के साथ दूल्हा घोड़ी पर चढ़कर दुलहन के घर की ओर चल पड़ा था। दूल्हा के साथी मस्त होकर नाच रहे थे।
मैं और मेरा एक दोस्त ज़रा जल्दी विवाह मंडप जाना चाहते थे। एक सज्जन जो हमारे लिए अनजान थे आगे बढ़कर कहा, “आप लोग शादी घर जाना चाहते हैं? चलिए मेरे साथ, शॉर्ट रास्ते से जल्द ही पहुँच जायेंगे।”
हम दोनों उनके साथ चल पड़े।
“कैसी लगी जलपान की व्यवस्था? सब ठीक था न?” सज्जन ने पूछा।
”बहुत सुंदर!” मैंने कहा।
“सजावट भी बहुत सुंदर है, लगता है लड़की वाले काफ़ी अमीर हैं!” मैंने जिज्ञासा प्रगट की।
सज्जन को मेरी बातों से हर्ष कम हुआ, ऐसा मुझे लगा।
“आप लड़की वाले के रिश्तेदार हैं क्या?”
“जी, दूर के रिश्तेदार हैं। मेरा घर यहाँ से दस किलोमीटर दूर दूसरे गाँव में है। शादी में निमंत्रित हैं,” सज्जन का जवाब था।
मंज़िल क़रीब आ चुकी थी।
अचानक सज्जन ने एक राज़ की बात कही, “लड़के वालों को शायद पता नहीं था कि लड़की की दादी को श्वेती की बीमारी है। दादी को सामने आने नहीं दिया होगा।”
इतना कहकर वह तुरंत हम दोनों को छोड़कर भीड़ में ग़ायब हो गया।
2 टिप्पणियाँ
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वाह वाह वाह ! सच में आस्तीन के साँप होते ही हैं !
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दुष्टता की पोल खोलती हुई अच्छी कथा।
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