कुहासा

निर्मल कुमार दे (अंक: 267, दिसंबर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

1.
भीगे नयन 
कुहासा भरा दिन
पुरानी यादें। 
2.
कुहासा छँटे 
खिली-खिली हो धूप
धानी चादर 
3.
सुस्त है पृथ्वी
कुहासे से लिपटी
शीतल हवा। 

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