माँ

निर्मल कुमार दे (अंक: 251, अप्रैल द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

वात्सल्य से बड़ा प्रेम नहीं
अपत्यस्नेह-सा दूजा कुछ नहीं
मातृ रुधिर से बनती संतान
कितना पवित्र स्तनपान।
 
संतान के लिए जीती माँ
माँ सदा देवी समान
मातृ स्पर्श से पुलकित शिशु
कितनी सुंदर मीठी मुस्कान।
 
कितनी भी व्यस्त हो जननी
रखती सदा बच्चे का ध्यान
सबसे बड़ी रक्षक है माता
सुर नर करते माँ को प्रणाम।
 
माँ की छाया माँ की कृपा
प्रकृति का अनुपम दान 
माँ तेरे चरणों में जन्नत
आँचल तेरा सदा महान।

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