नीम तले

01-12-2021

नीम तले

निर्मल कुमार दे (अंक: 194, दिसंबर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

“कैसे हैं तुम्हारे बाबूजी?” माँ की उद्विग्नता साफ़ झलक रही थी आवाज़ में। 

“माँ! डॉक्टर ने सँभाल लिया है। अब धीरे-धीरे साँस ले रहे हैं। कई तरह की जाँच के बाद डॉक्टर ने दवाई लिखी है।” 

“गाँव में तुम्हारे पिता बिल्कुल ठीक थे!”

“मम्मी! मुझे मालूम नहीं था कि इस बार भी दिवाली में इतना अधिक वायु प्रदूषण होगा। लोगों ने न्यायालय और सरकार के आदेश को ठेंगा दिखा दिया।” 

“वे दिल्ली में स्वस्थ नहीं रह पाएँगे, बेटा। अस्पताल से छुट्टी मिलते ही हम वापस गाँव जायेंगे।” 

“जी मम्मी, देखता हूँ,” दीपक बाबू ने मोबाइल ऑफ़ किया। 

दीपक के कानों में पिताजी की अस्पष्ट आवाज़ गूँज रही थी, “मुझे नीम तले ले चलो। सीने में बहुत दर्द हो रहा है।” 

बाबूजी गाँव के घर के सामने खड़े नीम के पेड़ की बात कर रहे थे। 

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