ज़िंदादिल हूँ 

15-07-2025

ज़िंदादिल हूँ 

मधु शर्मा (अंक: 281, जुलाई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

राही हूँ मगर मंज़िल की तलाश नहीं, 
चले न कोई संग फिर भी हताश नहीं। 
 
राह फूलों से लदी दूर बहुत दूर अभी, 
भरी है काँटों से, मगर मैं निराश नहीं। 
 
अँधेरे के लिए है इस दीये की रोशनी, 
चौंध जाऊँ, चाहिए वैसा प्रकाश नहीं। 
 
हालात गले लगाऊँ समझकर नियति, 
जुड़ी रहूँ पृथ्वी से, छूना आकाश नहीं। 
 
मील-पत्थर होंगे पथ में पैने पत्थर भी, 
परार्थी एक पथिक हूँ फेंको पाश नहीं। 
 
मधु, मुस्कुराती क्यों रहती, पूछते सभी, 
ज़िंदादिल हूँ चलती-फिरती लाश नहीं। 

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