पुरानी किताबें
निर्मल कुमार दे"आइए साहब, बरसों बाद आपके दर्शन हुए," रिटायर्ड प्रोफ़ेसर को अपनी दुकान पर आते देख नौशाद ने कहा।
"अरे आपने तो किताब की अच्छी दुकान खड़ी कर दी।"
"आपके मार्गदर्शन से यह संभव हुआ सर।"
"आपकी ईमानदारी और मेहनत का वज़ीफ़ा है नौशाद भाई। आपने बाइंडिग का काम छोड़ दिया?"
"नहीं सर, दो जून रोटी के लिए इस पेशे से ही अपना सफ़र शुरू किया था। बग़ल में बाइंडिंग का काम भी होता है। एक सहायक भी रख लिया है।"
"वाह! वेरी नाइस!"
सर आपने ही पुरानी किताबों की ख़रीद-बिक्री की सलाह दी थी। शहर के नामी पब्लिक स्कूलों की किताबें ख़ूब बिकती है आधे दाम पर। और तीस प्रतिशत दाम पर मैं पुरानी किताबें ख़रीदता हूँ।"
"और सामने रैक पर तो ये मोटी-मोटी किताबें तो स्कूल के कोर्स की नहीं है?"
"सर! अब मुझे किताबों से बहुत प्यार हो गया है। ये किताबें कबाड़ीवालों से ख़रीदी हैं। आप ख़ुद देख लें कितने बड़े-बड़े लेखकों की किताबें हैं। लोगों ने किलो के भाव से बेच दी हैं।"
प्रोफ़ेसर राव ने किताबें देखकर कहा, "बहुत नेक काम कर रहे हो नौशाद भाई। आपने किताबों की इज़्ज़त और क़ीमत समझी।"
"इन किताबों ने मेरी ज़िंदगी बदल दी सर। मेरा बेटा पुरानी किताबें पढ़कर ही आज शिक्षक की नौकरी में है।"
बहुत ख़ूब नौशाद भाई। दुकान के सामने एक सूचना बोर्ड टाँग दो,यहाँ पुरानी किताबें ख़रीदी और बेची जाती है।"
"सर,मेरा तज़ुर्बा बताता है किताबें कभी बेकार नहीं होतीं।"
"बिल्कुल सही कहा आपने नौशाद भाई," प्रोफ़ेसर राव किताबों की दुनिया में खो गए।
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