मेरे घर अख़बार आने के कारण

15-06-2024

मेरे घर अख़बार आने के कारण

डॉ. अशोक गौतम (अंक: 255, जून द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

ज्यों ही सुबह हॉकर अख़बार का रस निकाल अख़बार दरवाज़े की दरार में से ड्राइंग रूम में घुसाता है तो मैं आए शौच को वहीं रोक तुरंत उस पर यों झपट पड़ता हूँ जैसे बाज़ अपने शिकार पर। विवाह के बाद से मेरा और अख़बार का रिश्ता बाज़ और शिकार सा है। बीवी मेरा शिकार करती है तो मैं अख़बार का। 

हे अख़बारजीवियो! हमारे घर अख़बार इसलिए नहीं आता कि हम आसपास की जानकारी से अपडेट रहें। ख़बरिया चौनलों से भी तेज़ और सटीक ख़बरें तो मुझे मेरे पड़ोसी शर्मा जी से बिन माँगे ही व्हाट्सैप पर सटाक मिल जाती हैं। 

बावजूद इसके ज्यों ही हमारे घर में अख़बार आता है, घर का मुखिया होने के नाते अख़बार पर न होते हुए भी पहला हक़ मेरा ही होता है। क्योंकि उस वक़्त सब सोए होते हैं। सो मैं उस पर उस हक़ को बनाए रखता हूँ। हक़ कोई आपको आपकी थाली में परोस कर देने वाला नहीं। हक़ आजकल बनाए रखने का ज़माना है। इसलिए आपको अपने हक़ पर हर हाल में ख़ुद ही पूरा हक़ ज़माए रखना चाहिए। आप अपना हक़ पाना चाहते हों तो। 

जैसे ही अख़बार मेरे हाथ में आता है, मैं पहले पेज की तमाम मुख्य ख़बरों को दरकिनार करता केवल उस पेज पर जाता हूँ, जहाँ मेरे मतलब का आज का राशिफल छपा होता है। 

मेरे लिए शेयर बाज़ार कोई मायने नहीं रखता। वह आसमान छुए या फिर धूल चाटे। मेरे वेतन से बाज़ार का ही पूरा हो जाए तो उसे ही शेयर बाज़ार में लगा मानूँ। 

मेरे लिए दिल्ली में पानी नहीं है, कोई समस्या नहीं। जिनकी समस्या है उससे वे निपटें। यहाँ समाधान साझे होते हैं, पर समस्याएँ अपनी-अपनी। मेरे घर तो चौबीसों घंटे पानी रहता है, पानी छोड़ने वाले की कृपा से। बस, हर महीने उसे दो सौ देने पड़ते हैं। वह मेरी टंकी के पास से तब तक नहीं हिलता जब तक वह ओवरफ़्लो नहीं हो जाती। 

मेरे लिए घोटालों से कोई लेना-देना नहीं। हम हैं तो घोटाले हैं। घोटाले हमारी राष्ट्रीय धरोहर हैं। हमें उन्हें ईमानदारी से करते रहना चाहिए। हमें पूरी ईमानदारी से उनके होने में सहयोग देते रहना चाहिए। क्योंकि घोटाले करने से कइयों को घोटालों की जाँच करते हुए घोटाले करने का अवसर मिलता रहता है। 

जैसे ही आज के अख़बार को दुरुस्त करते, पेज दर पेज बदलते हुए एक पेज पर आज का राशिफल देखता हूँ तो मेरे दिल की धड़कने तेज़ हो जाती हैं। डरा सहमा-सा अपनी राशि का राशिफल साँसें रोके यों पढ़ता हूँ जैसे कोई राष्ट्रीय आपदा का समाचार पढ़ रहा होऊँ। जब आज के राशिफल में छपा राशिफल मेरी फ़ेवर वाला होता है तो मेरे चेहरे से चिंताओं की सारी रेखाएँ उड़न छू हो जाती हैं। दिल की धड़कने सामान्य से सामान्य हो ने लगती हैं। दिल ही नहीं, सिर से पाँव तक मैं बाग़-बाग़ हो जाता हूँ। उस वक़्त मत पूछो मुझे कितना सुकून मिलता है! उस वक़्त मैं ये भी भूल जाता हूँ कि मैंने बीस मिनट से शौच रोके रखा है। धीरे-धीरे तब अपनी राशि के राशिफल पढ़ते हुए मैं पॉज़िटिव अनर्जी से सराबोर हो ने लगता हूँ। मेरी नस नस में बेकार की कामयाबी दौड़ने लगती है। मन करता है इसी वक़्त आसमान से तारे तोड़ लाऊँ। मन करता है इसी वक़्त हिमालय को फ़तह कर लूँ। कलको पता नहीं मेरे राशिफल में क्या लिखा मिले। 

अख़बार में अपना राशिफल पढ़ने के बाद मैं अनर्जी फ़ुल अपनी बीवी को चाय बनाकर जगाता हूँ। उसे चाय और अख़बार एक साथ पीने की आदत हैं। चाय उसके समाने रखता हूँ तो वह अँगड़ाई लेती एक हाथ चाय तो दूसरा अख़बार की ओर बढ़ाती है। फिर चाय किनारे छोड़ उसमें इस मौसम के आज के सौंदर्य टिप्स पढ़ती उनमें इतनी लीन तल्लीन हो जाती है, अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरते हुए मानो वह किसी राष्ट्रीय समस्या पर किसी महान कमर्शियल विचारक का आलेख पढ़ रही हो। तब मुझे रोज़ की तरह उसे पुनः याद दिलाना पड़ता है कि बेगम! प्लीज़! चाय ठंडी हो रही है। ये दूसरी बात है कि सौंदर्य टिप्सों का अपने चेहरे पर प्रयोग करते-करते उसके चेहरे में मुझे तो कम से कम आजतक क़तई ग्लो नहीं दिखा। बीस सालों से हरपल केवल एक ही चेहरा देख रहा हूँ, इसकी एक वजह यह भी हो सकती है। जबसे मैं उसे जानता हूँ, दबी ज़ुबान में कहूँ तो उसे परिवार से अधिक चिंता अपने चेहरे के सौंदर्य की रही है। हो भी क्यों न! आज का दौर चरित्र चमकाने के बदले चेहरे चमकाने का दौर है। चमके चरित्रों पर समाज आज उतना नहीं रीझता जितना चमकीले चेहरों को देख पागल हो उठता है। 

हमारे घर में अख़बार आने का अगला कारण है इससे हमारे एरिए में बिजली के कट की सूचना मिलना। जैसे ही अख़बार से पता चलता कि आज हमारे एरिए में बिजली का कट है तो बीवी फटाफट दूसरे काम पैंडिंग कर बिजली से रिलेटिड सारे काम बिजली की तरह मुझे निर्देश देती निपटवाने लग जाती है एक कुशल गृहस्वामिनी की तरह ताकि बिजली जाने से पहले बिजली वाले सारे काम कर दूँ। वैसे उन घर के कामों का होना कोई मायने नहीं रखता जिनके पीछे श्रीमती का कुशल निर्देशन न हो। 

अपने आसपास भी आज जाने वाले का पता ही नहीं चलता। बाद में अख़बार से ही पता चलता है कि अपने आसपास किस जा चुके का उठाला कब है। हम जैसों को इनफ़ॉर्म करने हेतु ही शायद दिवंगतों के शुभचिंतक उठाला विज्ञापनी हो गए हैं। इसीलिए वे अपने बीमार के इलाज पर उतना ख़र्च नहीं करते जितना उसके जाने के बाद उसके जाने का प्रचार विज्ञापन दे करते हैं। उठाले के विज्ञापन का पूरा पेज न हो तो जैसे उठाले वाले की आत्मा को शान्ति ही नहीं मिलेगी। अतः जो जाने वाले के अंतिम संस्कार में चाह कर भी न जा सकें उनके लिए वैधानिक परामर्श! वे उठाले में ज़रूर जाएँ अपना चेहरा दिखाने। फ़िलहाल सम्बन्ध बने रहेंगे। 

हे इस दुनिया से उठे के उठाले का बैंक से उधार ले पूरे पेज का रंगीन विज्ञापन देने वाले दिवंगत के शुभचिंतको! जितना तुम अख़बार के सभी संस्करणों में दिवंगत के उठाले पर दिए विज्ञापन पर ख़र्च करते हो उससे आधा भी जो उसके इलाज पर ईमानदारी से ख़र्च करते तो घर का एक मेंबर राशन कार्ड में और बचा रहता और हर महीने शूगर के पेशेंट के हिस्से की चार सौ ग्राम चीनी की चाय मज़े से पी रहे होते। 

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