जनतंत्र के प्रहरी

01-01-2023

जनतंत्र के प्रहरी

निर्मल कुमार दे (अंक: 220, जनवरी प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

बनो तो दिनकर-सा बनो
लिखो तो दिनकर-सा लिखो
ज़रूरी नहीं सिर्फ़ यशोगाथा सत्ता की
ज़रूरत है उनकी आलोचना की भी। 
कवि हो, निडर बनो, 
लोभ प्रपंच से दूर रहो। 
चारण नहीं, कवि हो। 
पिछलग्गू नहीं, अग्रगामी बनो
दशा और दिशा बदलने की हिम्मत रखो
जनतंत्र के प्रहरी बन
लेखनी अपनी सार्थक करो। 
मानव जीवन दुर्लभ है
कठिन है कवि बन पाना
करो प्रयास सतत
समाज हित कुछ करना
दिग्भ्रमित को रास्ता दिखाओ
ज्ञान का एक दीप जलाओ
बनो तो दिनकर-सा बनो
लिखो तो दिनकर-सा लिखो। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता - हाइकु
कविता
कहानी
लघुकथा
कविता - क्षणिका
कविता-सेदोका
कविता-मुक्तक
अनूदित कविता
ललित निबन्ध
ऐतिहासिक
हास्य-व्यंग्य कविता
किशोर साहित्य लघुकथा
सांस्कृतिक आलेख
रचना समीक्षा
ललित कला
साहित्यिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में