भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

72. विरह का मिलन

 

(लता जी को श्रद्धांजलि) 

 

किस गर्भ से है कौन उपजा
क्या कहूँ कैसे कहूँ
आत्मा है एक, दूजी परमात्मा
लीन दोनों एक दूजे में यूँ हुए
बूँद जैसे जा मिली हो
प्यासे प्यार के सागर से
न वो रहा न ये रही
आग़ोश में जब समा गई
है हुआ संगम अनूठा
न ये रही न वो रहा। 

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