भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

61. दर्द का अहसास

दामिनी के दर्द का अहसास
होगा उन धड़कते दिलों का
कभी तो होगा . . .
यक़ीनन आज नहीं तो कल
आने वाले कल में, या
होगा तब जब
उनकी अपनी माँ-बहन
बेटी बहू या बीवी ख़ुद
रेंगती हुई छटपटाएगी
उन शिकंजों के चंगुल में, 
जो पाठ मानवता का
कभी पढ़ न पाये, जिनके
दूध में और ख़ून में
शायद
कभी इंसोनयत घुल ही न पाई! 
क्या समझेंगे व पीड़ा
नारी के अपमान की
निर्वस्त्र जब उसकी परतें हुईं
बेलिबासी जिस्म ने जब ओढ़ ली। 
कोई पांडव, कृष्ण कोई
अंग-वस्त्र न ला सका! 
कोई सुन नपाया
उस उबलते लहू की पुकार
जो किसी दुखियारी माँ की बद्दुआ की चीख़ थी
जो आग के बदले, आहों को उगलती रह गई
और उगलती ही रहेगी
उस समय तक, जब तक
उस आह के उगले पिघलते लावे में
धँस न जाएगी दरिंदगी, 
दर्द की उस बाढ़ में
तब तक नहाएगी गंदगी! 
तब अहसास होगा, ज़रूर होगा
उन्हें, दामिनी के इस दर्द का
जो ज़िन्दगी में जीते जी
दाह पर आह भरती रह गई! 

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