भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

58. बचपन की साइकिल

 

हम हैं जीवन, जीवन हमसे
जो कुछ हमारे पास है लोगो
उसको ही वरदान है माना
कार बँगला कुछ भी नहीं, पर
साइकिल ये क्या उससे कम है
दो है उसके पहिए और
दो हमारे पाँव
राहत पाते हैं कुछ वो, 
कुछ हम भी ये ही सच जान
काम हमारे आती है वो
हम भी अपना सुख दुख कर देते हैं उसके नाम
रोज़ सुबह-ओ-शाम
लहराती उस पवन के संग
घू्मते है सारा गाम। 

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