भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

43. जीवन के कुछ अनकहे राज़

 

अयाँ कर रही है क़ुदरत
नज़र में, नज़ारों में बहुत कुछ
पढ़ पाते हैं, कुछ नहीं
इल्म की कमी नहीं है, पर अमल की है
जो जीवन को गहराई देता है, गिराई भी
इल्म यहाँ तक है लाया, 
अमल कहाँ पहुँचाएगा, 
देगा यह पैग़ाम आने वाला कल
आने वाली पीढ़ियों को, किस रूप में, 
यह भी क़ुदरत तय करेगी
जो अट्टहास करके कह रही है
बहुत किया शासन, अब बस भी करो
आने वाली पीढ़ियों की डोर दे दो मेरे हाथ
होकर निश्चिंत तुम अपने जीवन में ठहराव लाओ। 

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