भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

63. विष को पीना होगा

 

जीवन को
मौत के शिकंजे से
आज़ाद करवाना है। 
अवसर है यही
जानती हूँ, पर पहचानती नहीं
उस सच को, जो
नरंतर कहता है—
“जीवन पाना है, तो
विष का पीना होगा” 
विष! 
विष तो जीवन को मार देगा
जीवन दान कैसे दे सकता है? 
जो ख़ुद कड़वाहटों का जाम है
अमृत कैसे बन सकता है? 
इसी अविश्वास में मैं, 
हर इक पल जीती हूँ, जीते जीते मरती हूँ
गर यही जीवन है
तो इस बार, 
इस बार उस सत्य का
जो निरंतर कहता है
“जीवनपाना है, तो
विष का पीना होगा” 
उस सत्य पर विश्वास करके
अपने भीतर के
सारे अविश्वास मिटाना चाहती हूँ। 
शायद इस जीवन को जीते जीते
मैं जान गई हूँ
कि मैं उस विष को पिये बिना
जीेवत नहीं रह सकती। 

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