भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

45. घरौंदा

 

अपने निज विराम की कुटीर है घरौंदा
एक घरौंदा तन के भीतर, एक घरौंदा मन के भीतर
जाना तब जब, बेटी से मैं बहू बनी
गृहस्थ सँभालते अन्नपूर्णा बनी
परिपक्वता पाकर फिर मैं माँ बनी
और देखते ही देखते, परिवार का विस्तार बड़ा हुआ
इतना बड़ा हुआ कि मैं अपने
व्यस्त विचारों की उलझन में घिरी रही, धँसी रही
जाना तब जब, देखकर महसूस हुआ
जिनकी मैं जन्मदातिनी रही
वे मुझसे क़द में बड़े हुए, इतने बड़े कि
वे सच में मुझे छोटा समझने लगे
और तब
मुझे सिमटाव की ज़रूरत पड़ी
घर के किसी कोने में समा न सकी मैं
बस अपने ही मन के कोने में
ढूँढ़ लिया इक कोना ख़ाली
वही आज मेरे ख़ालीपन की भावनाओं से भरा हुआ है
वही मेरा घरौंदा है, वहीं मैं विराम पाती हूँ
जब भी मैं थक जाती हूँ। 

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