भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

71. सुरों की मलिका लता जी की याद में

 

हाँ वह लता ही है
जीवन के संचार से जुड़ी लता
जिसकी आवाज़ की प्रति धुन को सुनते सुनते
आती जाती हवाएँ
तरंगित होतीं
पेड़ों के पत्ते झूमते गाते
वे धुनें दोहराते
जो सात सुरों में
सागर की लहराती हलचल को,
लहरों में उफान भरते जोश को
दिलों की धड़कन में संचार करती साँसों को
जीवन देती लता
जब जब गाती जीवन के सुर ताल पर
‘ये जीवन है, इस जीवन का
यही है, यही है रंग रूप’
सुर में, साज़ में, आवाज़ में
माँ के दूध की मिठास
जो दशक दर दशक
पुरानी शराब की तरह
ज़्यादा से और ज़्यादा
मिठास घोलती रही
अब जीवन के अंत तक
एक न ख़त्म होने  वाला सिलसिला
उस यादगार आवाज़ की
याद का परचम फहरता रहेगा
‘ऐ मेरे  वतन के लोगो
ज़रा याद करो क़ुर्बानी’
लता जी की अमर आत्मा
परमात्मा में यूँ लीन हुई है
जैसे दूध में पानी
बनकर सुर ताल की रवानी।

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