भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

62. अलविदा ऐ साथी

 

अलविदा ऐ साथी
फ़रेबी फ़ितरत के तुम वारिस
मैं शातिरता से हूँ नावाक़िफ़
ख़ुद को लुटा कर अब सीखी हूँ
और विश्वास के साथ कहती हूँ
तुम अपनी दुनिया बसाओ
मैं अपनी फ़ना करूँ
अपना अंत लाकर उस वुजूद के साथ
‘समस्त कायनात का ख़ात्मा करूँ
अपने ही वारिस को अपनी कोख में
दफ़ना कर, ख़ुद को फ़ना करूँ’
अभी तक विश्वास नहीं आता
कि मेरी कोख में
मेरे और तेरे बच्चे के भ्रूण में
मेरे और पराए ख़ून की मिलावट है
हाँ तुमने कहा था, और मैंने सुना था
मेरे विश्वास पर यह
तुम्हारे विश्वासघात का वार था
सच कहती हूँ
वह तुम्हारा ही बच्चा है
तुम कहते हो ‘नहीं’
सच क्या है, तुम भी जानते हो और मैं भी
पर अब, मैं ख़ुद मुख्तियार हूँ
तुम्हारी याद की कोई भी निशानी
न अपने पास, और न इस धरती पर
छोड़ना चाहती हूँ
अलविदा ऐ साथी
मैं अपने आप को फ़ना कर के
इस समस्त कायनात का ख़ात्मा करूँगी
मेरे भीतर धड़कते हुए उस वारिस का
वुजूद मिटाकर, अपनी ही कोख में दफ़ना कर
साथ उसके फ़ना हो जाऊँगी। 

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