भीतर से मैं कितनी खाली (रचनाकार - देवी नागरानी)
46. दोस्ती के नाम
प्रिय सखी,
मिली थी जब तुम, हाँ, मिली थी तुम जब
यही कहा था तुमने, मैं सत्रह साल की हूँ,
ख़ुशी हुई जानकर एक अरसे के बाद
कोई तो मिली है मुझको, मुझ जैसी ही
कुछ साल मात्र मुझसे छोटी है,
उड़ान भरने लगी, पाकर तुम सी सखी
जिसने 'ऐंवी ऐंवी' बातें करके मोह लिया मेरा मन
अपनापन देकर मुझे कर लिया बेमोल धन
और फिर समय सरकता रहा
मैं यहाँ, तुम वहाँ
और बीच में यादों का संसार
“दस मिनट में नीचे उतरो गेट पर मिलती हूँ। चलते हैं . . . “
“कहाँ . . .?”
वहाँ जहाँ कोई आता जाता नहीं
जहाँ ख़ामोशी तो बरपा होती थी सखी . . .
पर ऐसा सन्नाटा तो बिल्कुल भी न होता था
भले ही रात के स्याह साए होते थे, पर
ऐसा सूनापन तो कभी न था . . .
साथ साथ हम पंद्रह रोड को फलाँग कर
हिरनी सी चौकड़िया भरते
शॉर्ट कट वाले उन रास्तों से
पहुँचते थे विशाल सागर की बाँहों में
नीले अंबर के नीचे, पर हमारे अपने शोर में
कहाँ सुनाई देता था उन मचलती लहरों का शोर
या, शायद . . .।
हम सुना ही न करते थे
तुम कहती, मैं सुनती
मैं कहती, तुम सुनती सखी
और आज
इन यादों का बवंडर, मेरे भीतर के सन्नाटों को भगाकर
भीतर ही भीतर कौतूहल पैदा कर रहा है
यह सोच कर कि आज तुम सत्तर बरस की हुई हो
और मैं तुमसे फिर भी फ़क़त कुछ साल बड़ी
तेरी 'ऐंवी-ऐंवी' बातें याद तो कर सकती हूँ
पर, सखी उड़ान नहीं भर सकती
बस यही सोच कर ख़ुश हूँ कि तुम अब भी मेरी सखी हो
वही सखी, जो आज बड़ी हुई है
मैं बड़ी से कुछ और बड़ी हुई हूँ,
देकर दुआएँ हस्ताक्षर कर रही हूँ!
विषय सूची
- प्रस्तावना – राजेश रघुवंशी
- भूमिका
- बहुआयामी व्यक्तित्व की व्यासंगी साहित्यिकारा देवी नागरानी
- कुछ तो कहूँ . . .
- मेरी बात
- 1. सच मानिए वही कविता है
- 2. तुम स्वामी मैं दासी
- 3. सुप्रभात
- 4. प्रलय काल है पुकार रहा
- 5. भीतर से मैं कितनी ख़ाली
- 6. एक दिन की दिनचर्या
- 7. उम्मीद नहीं छोड़ी है
- 8. मैं मौत के घाट उतारी गई हूँ
- 9. क्या करें?
- 10. समय का संकट
- 11. उल्लास के पल
- 12. रैन कहाँ जो सोवत है
- 13. पाती भारत माँ के नाम
- 14. सुख दुख की लोरी
- 15. नियति
- 16. वे घर नहीं घराने हैं
- 17. यादों में वो बातें
- 18. मन की गाँठें
- 19. रेंग रहे हैं
- 20. मुबारक साल 2021
- 21. जोश
- 22. इल्म और तकनीक
- 23. शर्म और सज्दा
- 24. लम्स
- 25. अपनी नौका खेव रहे हैं
- 26. नया साल
- 27. बहाव निरंतर जारी है
- 28. तनाव
- 29. यह दर्द भी अजीब शै है
- 30. रात का मौन
- 31. रावण जल रहा
- 32. लौट चलो घर अपने
- 33. उम्मीद बरस रही है
- 34. क़ुदरत परोस रही
- 35. रेत
- 36. मेरी यादों का सागर
- 37. मन का उजाला
- 38. लड़ाई लड़नी है फिर से
- 39. सिहर रहा है वुजूद
- 40. मेरी जवाबदारी
- 41. ख़ुद के नाम एक ख़त
- 42. बँट गए आदमी
- 43. जीवन के कुछ अनकहे राज़
- 44. नव जीवन का नव निर्माण
- 45. घरौंदा
- 46. दोस्ती के नाम
- 47. भेदभाव का इतिहास
- 48. ग़ुलामी की प्रथा
- 49. साँसें रेंग रही हैं
- 50. जेनरेशन गैप है
लेखक की कृतियाँ
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- उस शिकारी से ये पूछो
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- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
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