भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

67. माँ हे माँ

 

माँ का नाम आते ही
शब्दों का उल्लहास दिल में उजाला फैलाता है
माँ की तस्वीर आँखों में रौशन हो जाती है
स्नेह दुलार उनका हर सोच पर हावी हो जाता है
थाह मिलती है क़लम का
जो चुनकर शब्द ममता के
ख़ुद को बस बहलाती है
बात जब भी माँ बेटी की आती है
उसी बँधन पर लिखते लिखते
मोह की डोर जब बेटी की बेटी पर आती है
तब नानी को दोहती बहुत भाती है
उसके लिये वो क्या कुछ नहीं करती
हर इच्छा को पूरा करते
अपना मन बहलाती है
पर जब वही नातिन बड़ी से बड़ी होकर
अपनी बेटी का जीवन सँवारती है
तो फिर उसकी नानी मंच पर आ जाती है
माँ की माँ नानी
नानी की नानी बड़ी नानी
का दर्जा पाती है
वाह रिश्तों का दरख़्त भी कितनी बाँहें फैलाता है
कितनों को छाँव में नहलाता है। 

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