भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

52. जीवन है बस रैन बसेरा

 

कालचक्र रुकता नहीं
समय से आगे चलता है
बीते कल की यादें भूल
एक नया दिन फिर देता है
इसे जियो इसे सँजोकर साँसों से बनाओ यादगार। 
भोर नई जब जागी, ढलकर वो ही फिर से शाम हुई
अंतिम चरण जब रात हुई
स्याह आकाश के साए में
देखे कुछ तारे टिमटिमाते
आसपास ही लुकछुप करता इक ध्रुव तारा
जिसे देखते अधर मुस्कुराते
नए सुर में गुनगुनाते
भूला बिसरा गीत वो गाते
आज में हमको जीना है, जाम ख़ुशी का पीना है
आज हमारा कल बनेगा, आज के बाद का कल जो होगा
आज की नींव पर वो रक़्स करेगा
ज़िन्दगी जियो, हर दिन जियो, हर पल जियो
बस आज ही है जीवन का सवेरा
यही पल है तेरा-मेरा
दुनिया ‘देवी' रैन बसेरा। 

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