भीतर से मैं कितनी खाली (रचनाकार - देवी नागरानी)
49. साँसें रेंग रही हैं
आकाश से ऊँची ख़्वाइशें
बेपर सी वो उड़ चली थीं
साँसों की सरगम पर, छेड़ कर मधुर सी धुन
उस यक तारे पर, जो भूले हैं हम आज बजाना
और छोड़ दिए हैं सुनने, वे
शाह, स्वामी और सचल के बैत
वे गद्य-पद्य के श्लोक, जो गीता ने दोहराए
दोहे दास कबीर व तुलसी के
जो माँ-दादी ने दिन भर गाये
अब, इस दोहरे चौराहे पर
ज़िन्दगी रुकी है कुछ पल थक हार कर
भागते भागते सपनों की सुरंगों से
ख़्वाहिशें थम गई हैं, हाँफते-हाँफते आकर ठहरी हैं
उस रौशन दुनिया में
जहाँ तारीक साए साफ़ दिखाई दे रहे हैं
वही जो जीवन की बागडोर थामे कह रहे हैं
“ये करो, वो ना करो
कुछ करो, कुछ ना करो की फ़सीलें
बंद घरों में भर रही घुटन, ख़्वाहिशों में भर रही है सीलन
उड़ान भरना तो दूर, अब ज़मीन पर
चलते चलते लगता है जैसे साँसें रेंग रही हैं।
विषय सूची
- प्रस्तावना – राजेश रघुवंशी
- भूमिका
- बहुआयामी व्यक्तित्व की व्यासंगी साहित्यिकारा देवी नागरानी
- कुछ तो कहूँ . . .
- मेरी बात
- 1. सच मानिए वही कविता है
- 2. तुम स्वामी मैं दासी
- 3. सुप्रभात
- 4. प्रलय काल है पुकार रहा
- 5. भीतर से मैं कितनी ख़ाली
- 6. एक दिन की दिनचर्या
- 7. उम्मीद नहीं छोड़ी है
- 8. मैं मौत के घाट उतारी गई हूँ
- 9. क्या करें?
- 10. समय का संकट
- 11. उल्लास के पल
- 12. रैन कहाँ जो सोवत है
- 13. पाती भारत माँ के नाम
- 14. सुख दुख की लोरी
- 15. नियति
- 16. वे घर नहीं घराने हैं
- 17. यादों में वो बातें
- 18. मन की गाँठें
- 19. रेंग रहे हैं
- 20. मुबारक साल 2021
- 21. जोश
- 22. इल्म और तकनीक
- 23. शर्म और सज्दा
- 24. लम्स
- 25. अपनी नौका खेव रहे हैं
- 26. नया साल
- 27. बहाव निरंतर जारी है
- 28. तनाव
- 29. यह दर्द भी अजीब शै है
- 30. रात का मौन
- 31. रावण जल रहा
- 32. लौट चलो घर अपने
- 33. उम्मीद बरस रही है
- 34. क़ुदरत परोस रही
- 35. रेत
- 36. मेरी यादों का सागर
- 37. मन का उजाला
- 38. लड़ाई लड़नी है फिर से
- 39. सिहर रहा है वुजूद
- 40. मेरी जवाबदारी
- 41. ख़ुद के नाम एक ख़त
- 42. बँट गए आदमी
- 43. जीवन के कुछ अनकहे राज़
- 44. नव जीवन का नव निर्माण
- 45. घरौंदा
- 46. दोस्ती के नाम
- 47. भेदभाव का इतिहास
- 48. ग़ुलामी की प्रथा
- 49. साँसें रेंग रही हैं
- 50. जेनरेशन गैप है
लेखक की कृतियाँ
- साहित्यिक आलेख
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- पुस्तक समीक्षा
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- ग़ज़ल
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- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
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