भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

64. नारी मन की रूदाद

 

प्रिय सखी
आज तुम्हारे मन की भावनाएँ शब्दों में पढ़ी
पढ़ना क्या था, 
लगा कोई मेरी चमड़ी खुरेच रहा है
अपने नुकीले नाखूनों से
क्या कहूँ, क्या लिखूँ? मेरे कहने के पहले
सब कुछ तो तुम कह देती हो, 
औरत के ख़ालीपन के हर कोने को भर देती हो
सोचती हूँ, मैं अपनी सोच को कहाँ सजाकर रखूँ, 
किस पैरहन में वह सजेगी
क्या रेशम में, या सूत की उस सादगी में
या फिर ऐसे ही किसी पैरहन में
जैसे निर्भया के कासाए बदन का बयान लिखा गया था
या अभी कुछ दिन पहले की बात है
जो नए नग्न पहरावन के साथ
शब्दों में सजाई गई थी वह बालिका
क्या आज वह पैरहन भी पुराना हो गया? 
गर्मजोशी क्या क्षीण पड़ गई है
उस सूत कातती बुढ़िया को मेरा संदेश भी भेजना
कहना उससे-अब वह सूत कातना बंद कर दे
जो नारी को ढाँपने के काम नहीं आता'
और तो और
कृष्ण की तरह कोई अंगरक्षक भी नहीं आता, 
इसलिए हो सके तो कुछ ऐसा कवच बुनो
जिसको कोई, तार तार न कर पाए
हाँ यह ज़रूर हो कि
तार तार करने वाले हाथ छलनी हो जाए। 
सखी यह तेरी नहीं, मेरी नहीं
हर नारी मन रूदाद है! 

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