भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

59. तुम न आए

 

मौसम आकर चले गए
रूप बदलकर नए नए
आँख टिकी थी चौखट पर
तुम मगर फिर भी न आए
 
बहार में सब झूम उठे
नवरंग भरे कपोल नये
ख़ुशियाँ छाई पौधों पर
तुम मगर फिर भी न आए
 
आज ख़िज़ाँ की आहट सुन
पत्ते पड़ गए पीले डर से
ठिठुर रहे हैं डाली पर
तुम मगर फिर भी न आए
 
आशाओं के दीप ढले
अस्त हुए जो ख़्वाब पले
मेरे दुख के हमसफ़र
तुम मगर फिर भी न आए
 
पलकों पर सपने नए
सोच से सब सँवर गए
सूनापन कर गया बसर
तुम मगर फिर भी न आए।

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