भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

69. वैलेंटाइन दिवस

 

आज का दिन
प्यार देने व लेने का
कहने सुनने का दिन
मनाने का दिन
बाँटने का दिन
फूलों के आदान प्रदान का दिन
साल के तीन सौ पैंसठ दिनों का मात्र एक दिन
चौदह फरवरी
जिसने भी चुना होगा, मनाया होगा
बहुत कुछ पाया होगा
इस महोत्सव में
पर
नियति, इस एक दिन में
कितने जीवन इंद्रधनुषी रंगों से
सजाती है, सँवारती है, मिटाती है
तहस नहस कर देती है
कितने लोगों के ख़्वाब
रेज़ा रेज़ा कर देती है
धराशयी करती है आशाएँ
ठुकरा देती है प्यार की सौग़ातों को
उनका क्या? 
अनगिनत सवाल
जवाब की तलब में सूली पर लटके हुए हैं
पर प्रेम अमर है
प्यार पाना और देना सब के बस में है
दीेजिए, लीेजिए
आज ही नहीं, कल ही नहीं
रोज़, हर रोज़ हक़ है आपका
साल के सभी दिन
वहाँ जहाँ किसी दिल को इसकी इंतहाई ज़रूरत हो। 

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