भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

56. गुलमोहर

 

घास फूस का बना हुआ है
मुझ ग़रीब सा मेरा ये घर
ग़ुर्बत उसका नाम है लोगो
बड़ा मगर है उसका दर। 
 
सोच से मैं सजा रही हूँ
फिर भी नहीं मैं पाती कर
गुलमोहर के फूल उगे जो
कर गये आसां काम मगर। 
 
खिड़की से जो देखा बाहर
झाँक रहे थे वो भी भीतर
पाँव धरा चौखट के बाहर
लगा रखा हो मख़मल पर
 
दिल हुआ है बाग़बाँ अब
देख के सुंदर मेरा घर
गुलमोहर के फूल सुहाने
सजा रहे जो मेरा घर। 

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