भीतर से मैं कितनी खाली

भीतर से मैं कितनी खाली  (रचनाकार - देवी नागरानी)

53. नए साल के नये वादे

 

नया साल आकर चला जाता है
पुनः नए वादे कर जाता है
और फिर एक और नया साल आता है! 
अपने ही नक़ाबपोश चेहरे में
जाने कितने स्याह राज़ छुपाकर
जाने से पहले
बारूदी फटाखों से
शरारों की दीवाली मनाता है
दिलेरों की छाती को छलनी करवाता है
शहादतों के नारे लगवाता है
उनकी बेवाओं को ता-उम्र रुलाता है
माँ बहनों की आशाओं के दीप
अपने नापाक इरादों से बुझवाता है
और
फिर वही एहसान फ़रामोशी का चलन
कुछ नया करने के लिए
नया आवरण ओढ़कर
आ जाता है
पर अब उसका स्वागत कौन करे? 
कौन उसके सर पर ख़ुशियों का ताज रखे
जिसे खंडहर बनाकर
उसने रक़ीबी हसरतें पूरी कर लीं
पर क्या हासिल हुआ? 
हा हा कार मचा, भूकंप आया
जलजला थरथराया
और फिर सब थम गया
सिर्फ़ धरती का आँचल लाल हो गया
उन वीर सपूतों के लहू से
जिनकी याद हर साल
फिर ताज़ा हो जाती है
जब
पुराना साल जाता है
और नया साल आता है . . . 

<< पीछे : 52. जीवन है बस रैन बसेरा आगे : 54. नवनिर्माण >>

लेखक की कृतियाँ

ग़ज़ल
आप-बीती
कविता
साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो