भगीरथ संकल्प
अमरेश सिंह भदौरिया
सूख चुकी थी पृथ्वी की देह,
नदियाँ बस नाम रह गई थीं,
बादल—
जैसे किसी निर्वासित गाथा के भटके हुए अक्षर।
धरती की छाती पर
दरारें थीं,
भूख के नक़्शे थे,
प्यास की चीखें थीं।
तब . . .
एक अकेला उठा—
नंगे पाँव, धूप से झुलसा,
अग्निपथ रचता हुआ!
उसने समय के देवताओं को नहीं मनाया,
न द्रवित किया किसी युग के भाग्य को,
बस अपने कंधों पर उठा लिया
एक पूरे ब्रह्मांड का बोझ।
छेनी-हथौड़ी से नहीं,
अपने हठ से, अपने अश्रु से,
पर्वत की छाती को चीर डाला,
और धरती को दिया—
जल, जीवन, गति।
भगीरथ था वह—
न किसी मंदिर में पूजित,
न किसी कथा में अलंकृत,
बस मिट्टी से उठकर
मिट्टी के लिए जिया।
आज भी जब धरती रोती है,
आकाश थमता है,
तो एक भगीरथ
चुपचाप जन्म लेता है—
अपने भीतर
संपूर्ण सृष्टि को संचालित कर देने के संकल्प के साथ।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अधनंगे चरवाहे
- अनाविर्भूत
- अवसरवादी
- अहिल्या का प्रतिवाद
- अख़बार वाला
- आँखें मेरी आज सजल हैं
- आज की यशोधरा
- आरक्षण की बैसाखी
- आस्तीन के साँप
- आख़िर क्यों
- इक्कीसवीं सदी
- उपग्रह
- कुरुक्षेत्र
- कैक्टस
- कोहरा
- क्यों
- खलिहान
- गाँव - पहले वाली बात
- चुप रहो
- चुभते हुए प्रश्न
- चैत दुपहरी
- चौथापन
- जब नियति परीक्षा लेती है
- तितलियाँ
- दहलीज़
- दिया (अमरेश सिंह भदौरिया)
- दीपक
- देह का भूगोल
- दो जून की रोटी
- धरती की पीठ पर
- धोबी घाट
- नदी सदा बहती रही
- पगडंडी पर कबीर
- पहली क्रांति
- पीड़ा को नित सन्दर्भ नए मिलते हैं
- पुत्र प्रेम
- प्रभाती
- प्रेम की चुप्पी
- बंजर ज़मीन
- भगीरथ संकल्प
- भाग्य रेखा
- भावनाओं का बंजरपन
- माँ
- मुक्तिपथ
- मुखौटे
- मैं भला नहीं
- योग्यता का वनवास
- लेबर चौराहा
- शस्य-श्यामला भारत-भूमि
- शान्तिदूत
- सँकरी गली
- सती अनसूया
- सरिता
- साहित्यिक आलेख
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- लघुकथा
- सांस्कृतिक आलेख
- ललित निबन्ध
- चिन्तन
- सामाजिक आलेख
- शोध निबन्ध
- कहानी
- ललित कला
- पुस्तक समीक्षा
- कविता-मुक्तक
- हास्य-व्यंग्य कविता
- गीत-नवगीत
- विडियो
-
- ऑडियो
-