अमलतास

अमरेश सिंह भदौरिया (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

चुपचाप झरता है अमलतास, 
जैसे पीली चूड़ियाँ
गिर रही हों किसी दुलहन की कलाई से। 
 
गाँव की पगडंडी पर
जब धूप भी सो रही होती है, 
तब वह
रंग भरता है उदासी में। 
 
न फूलों का शोर, 
न ख़ुशबू का घमंड—
बस पीली परतों में
एक ऋतु की मुस्कान ओढ़े
वह खड़ा रहता है। 
 
लड़कियाँ उसके नीचे
खेल जाती हैं ब्याह-बनाव की कल्पनाएँ, 
बुज़ुर्ग उसकी छाँव में
बीते दिनों की धूप सेंकते हैं। 
 
अमलतास—
केवल फूल नहीं, 
एक वक़्त का पुलिंदा है, 
जिसमें यादें झरती हैं
धूप की तरह, 
धीरे-धीरे, 
मौसम के संग। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
सांस्कृतिक आलेख
साहित्यिक आलेख
कहानी
सामाजिक आलेख
लघुकथा
चिन्तन
सांस्कृतिक कथा
ऐतिहासिक
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
ललित निबन्ध
शोध निबन्ध
ललित कला
पुस्तक समीक्षा
कविता-मुक्तक
हास्य-व्यंग्य कविता
गीत-नवगीत
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में