दृष्टिकोण जीवन का अंतिम पाठ

01-09-2025

दृष्टिकोण जीवन का अंतिम पाठ

अमरेश सिंह भदौरिया (अंक: 283, सितम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

किताबों ने हमें थमाया
त्रिकोण, चतुर्भुज, षट्कोण और समकोण। 
रेखाओं और सूत्रों में
बाँधने की चेष्टा की जीवन को। 
 
पर जीवन की असली पहेलियाँ
कभी ब्लैकबोर्ड पर हल नहीं हुईं। 
वे सामने आईं
जब अनुभव ने प्रश्न किया—
और उत्तर हमें ख़ुद गढ़ना पड़ा। 
 
कक्षा में किसी ने नहीं बताया
कि सबसे कठिन प्रश्न है
ज्ञानकोण—
जहाँ किताबें मौन हैं
और अनुभव बोलता है। 
 
कोई पाठ्यक्रम नहीं समझा पाया
संपर्ककोण—
जहाँ दो अजनबी आत्माएँ
एक अदृश्य रेखा से जुड़ती हैं। 
 
कोई शिक्षक नहीं खोल पाया
संतुलनकोण—
जहाँ रिश्तों और अपेक्षाओं की डोर
हर क्षण तनती और ढीली होती रहती है। 
 
और किसी परीक्षा में नहीं पूछा गया
संवादकोण—
जहाँ शब्द नहीं, 
बल्कि मौन ही संवाद का आधार होता है। 
 
पर इन सबके मूल में है
संवेदनाकोण—
जिसके बिना मनुष्य केवल देह है, 
और समाज केवल भीड़। 
 
गणित ने बहुत कुछ सिखाया, 
पर जीवन ने धीरे से कानों में कहा—
रेखाओं और आकृतियों से परे
सबसे बड़ा ज्ञान है—
अपना दृष्टिकोण। 
 
और शायद, 
यही है वह अंतिम पाठ, 
जो किसी किताब में नहीं, 
बल्कि जीवन की गोद में मिलता है। 

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