देहरी
अमरेश सिंह भदौरिया
यह देहरी,
सिर्फ़ घर की सीमा नहीं,
यह वो बिंदु है,
जहाँ से जीवन का हर पल,
हमारी आंतरिक यात्रा को आकार देता है।
हर क़दम, हर श्वास,
यहीं से निकलता है।
यहीं से शुरू होती है वह यात्रा,
जो हमें अपने अस्तित्व की तलाश में ले जाती है।
नन्हे क़दमों से जो कभी गूँजता था,
वह अब उस देहरी पर खड़ा,
सोचता है—
क्या मैंने सच में अपना रास्ता खोज लिया है?
क्या मैं उस सत्य तक पहुँच सका हूँ,
जो भीतर था, बाहर से छिपा हुआ?
यह देहरी कोई अंतर नहीं,
सिर्फ़ एक प्रतीक है—
हमारे भीतर की यात्रा का,
जहाँ हम ख़ुद को तलाशते हैं,
और एक दिन,
उस ठंडी, शान्ति से भरी देहरी के पार,
सभी उत्तर मिल जाते हैं।
यह देहरी न केवल एक सीमा है,
यह एक समझ है—
समझ, जो हमें अपनी यात्रा से मिलती है।
जब दुनिया के शोर में
हम खड़े होते हैं इस देहरी पर,
तो हमें एहसास होता है कि
हर चीज़ को छोड़कर
सिर्फ़ एक ही चीज़ मायने रखती है—
आत्मा की शान्ति।
यह देहरी,
जिसे हम अक्सर पार करने का सोचते हैं,
असल में हमसे कहती है—
“रुको, भीतर की यात्रा को महसूस करो,
आत्मा की गहराई में उतरकर,
सत्य को पहचानो।”
हर देहरी,
हर संधि स्थल,
सिर्फ़ एक द्वार नहीं,
एक मार्ग है—
संसार और आत्मा का मिलन,
जो हमें हर बार
नई दृष्टि देता है,
नई समझ,
नई दिशा।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- सामाजिक आलेख
- कविता
-
- अधनंगे चरवाहे
- अधूरा सच
- अनंत पथ
- अनाविर्भूत
- अभिशप्त अहिल्या
- अमरबेल
- अमलतास
- अवसरवादी
- अहिल्या का प्रतिवाद
- अख़बार वाला
- आँखें मेरी आज सजल हैं
- आँगन
- आँगन की तुलसी
- आज की यशोधरा
- आज वाल्मीकि की याद आई
- आरक्षण की बैसाखी
- आस्तीन के साँप
- आख़िर क्यों
- इक्कीसवीं सदी
- उपग्रह
- उपग्रह
- एकाकी परिवार
- कचनार
- कछुआ धर्म
- कमरबंद
- कुरुक्षेत्र
- कैक्टस
- कोहरा
- क्यों
- खलिहान
- गाँव - पहले वाली बात
- गिरगिट
- चित्र बोलते हैं
- चुप रहो
- चुभते हुए प्रश्न
- चूड़ियाँ
- चैत दुपहरी
- चौथापन
- जब नियति परीक्षा लेती है
- ज्वालामुखी
- ढलती शाम
- तितलियाँ
- दहलीज़
- दिया (अमरेश सिंह भदौरिया)
- दीपक
- दृष्टिकोण जीवन का अंतिम पाठ
- देह का भूगोल
- देहरी
- दो जून की रोटी
- धरती की पीठ पर
- धोबी घाट
- नदी सदा बहती रही
- नयी पीढ़ी
- नेपथ्य में
- पगडंडी पर कबीर
- परिधि और त्रिभुज
- पहली क्रांति
- पहाड़ बुलाते हैं
- पाखंड
- पारदर्शी सच
- पीड़ा को नित सन्दर्भ नए मिलते हैं
- पुत्र प्रेम
- पुष्प वाटिका
- पूर्वजों की थाती
- प्रभाती
- प्रेम की चुप्पी
- फुहार
- बंजर ज़मीन
- बंजारा
- बबूल
- बवंडर
- बिखरे मोती
- बुनियाद
- भगीरथ संकल्प
- भाग्य रेखा
- भावनाओं का बंजरपन
- भुइयाँ भवानी
- मन मरुस्थल
- मनीप्लांट
- महावर
- माँ
- मुक्तिपथ
- मुखौटे
- मैं भला नहीं
- योग्यता का वनवास
- रहट
- रातरानी
- लेबर चौराहा
- शक्ति का जागरण
- शस्य-श्यामला भारत-भूमि
- शान्तिदूत
- सँकरी गली
- संयम और साहस का पर्व
- सती अनसूया
- सरिता
- सावन में सूनी साँझ
- हरसिंगार
- हल चलाता बुद्ध
- ज़ख़्म जब राग बनते हैं
- किशोर साहित्य कविता
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- सांस्कृतिक आलेख
-
- कृतज्ञता का पर्व पितृपक्ष
- कृष्ण का लोकरंजक रूप
- चैत्र नवरात्रि: आत्मशक्ति की साधना और अस्तित्व का नवजागरण
- जगन्नाथ रथ यात्रा: आस्था, एकता और अध्यात्म का महापर्व
- न्याय और अन्याय के बीच
- बलराम जयंती परंपरा के हल और आस्था के बीज
- बुद्ध पूर्णिमा: शून्य और करुणा का संगम
- योगेश्वर श्रीकृष्ण अवतरणाष्टमी
- रामनवमी: मर्यादा, धर्म और आत्मबोध का पर्व
- लोक आस्था का पर्व: वट सावित्री पूजन
- विजयदशमी—राम और रावण का द्वंद्व, भारतीय संस्कृति का संवाद
- विश्व योग दिवस: शरीर, मन और आत्मा का उत्सव
- श्राद्ध . . . कृतज्ञता और आशीर्वाद का सेतु
- साहित्यिक आलेख
- कहानी
- लघुकथा
- चिन्तन
- सांस्कृतिक कथा
- ऐतिहासिक
- ललित निबन्ध
- शोध निबन्ध
- ललित कला
- पुस्तक समीक्षा
- कविता-मुक्तक
- हास्य-व्यंग्य कविता
- गीत-नवगीत
- विडियो
-
- ऑडियो
-