आज वाल्मीकि की याद आई
अमरेश सिंह भदौरिया
आज सुबह
जब खिड़की से रोशनी भीतर आई,
तो जाने क्यों मन बहुत शांत था।
रेडियो पर सुना— आज वाल्मीकि जयंती है।
क्षणभर को लगा, जैसे कोई पुरानी बात
अचानक भीतर जाग उठी।
मैंने सोचा—
कितना विलक्षण होगा वह क्षण,
जब किसी पक्षी के करुण स्वर ने
एक मनुष्य को कवि बना दिया।
दुख ही शायद सबसे बड़ा शिक्षक होता है।
वाल्मीकि ने सिखाया,
कि ग़लती करने वाला भी
प्रकाश पा सकता है,
अगर उसके भीतर
थोड़ी-सी पश्चात्ताप की आग बची हो,
और किसी की पीड़ा सुनने की क्षमता।
कभी-कभी लगता है,
कविता भी कोई तपस्या है—
जिसे केवल वे लिख सकते हैं
जो जीवन को महसूस करते हैं,
केवल देखते नहीं।
आज जब मैंने क़लम उठाई,
तो ऐसा लगा,
मानो तुम ही मेरे भीतर हो,
जो हर शब्द से पहले पूछते हो—
“क्या यह सत्य है?”
हे वाल्मीकि,
तुम केवल आदिकवि नहीं,
एक दिशा हो—
जो दिखाती है कि
अंधकार में भी
प्रकाश की शुरूआत हो सकती है।
आज तुम्हारी जयंती पर
मैं प्रणाम करता हूँ—
कवि को नहीं,
उस मनुष्य को
जिसने करुणा को धर्म बना दिया।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- सामाजिक आलेख
- कविता
-
- अधनंगे चरवाहे
- अधूरा सच
- अनंत पथ
- अनाविर्भूत
- अभिशप्त अहिल्या
- अमरबेल
- अमलतास
- अवसरवादी
- अहिल्या का प्रतिवाद
- अख़बार वाला
- आँखें मेरी आज सजल हैं
- आँगन
- आँगन की तुलसी
- आज की यशोधरा
- आज वाल्मीकि की याद आई
- आरक्षण की बैसाखी
- आस्तीन के साँप
- आख़िर क्यों
- इक्कीसवीं सदी
- उपग्रह
- उपग्रह
- एकाकी परिवार
- कचनार
- कछुआ धर्म
- कमरबंद
- कुरुक्षेत्र
- कैक्टस
- कोहरा
- क्यों
- खलिहान
- गाँव - पहले वाली बात
- गिरगिट
- चित्र बोलते हैं
- चुप रहो
- चुभते हुए प्रश्न
- चूड़ियाँ
- चैत दुपहरी
- चौथापन
- जब नियति परीक्षा लेती है
- ज्वालामुखी
- ढलती शाम
- तितलियाँ
- दहलीज़
- दिया (अमरेश सिंह भदौरिया)
- दीपक
- दृष्टिकोण जीवन का अंतिम पाठ
- देह का भूगोल
- देहरी
- दो जून की रोटी
- धरती की पीठ पर
- धोबी घाट
- नदी सदा बहती रही
- नयी पीढ़ी
- नेपथ्य में
- पगडंडी पर कबीर
- परिधि और त्रिभुज
- पहली क्रांति
- पहाड़ बुलाते हैं
- पाखंड
- पारदर्शी सच
- पीड़ा को नित सन्दर्भ नए मिलते हैं
- पुत्र प्रेम
- पुष्प वाटिका
- पूर्वजों की थाती
- प्रभाती
- प्रेम की चुप्पी
- फुहार
- बंजर ज़मीन
- बंजारा
- बबूल
- बवंडर
- बिखरे मोती
- बुनियाद
- भगीरथ संकल्प
- भाग्य रेखा
- भावनाओं का बंजरपन
- भुइयाँ भवानी
- मन मरुस्थल
- मनीप्लांट
- महावर
- माँ
- मुक्तिपथ
- मुखौटे
- मैं भला नहीं
- योग्यता का वनवास
- रहट
- रातरानी
- लेबर चौराहा
- शक्ति का जागरण
- शस्य-श्यामला भारत-भूमि
- शान्तिदूत
- सँकरी गली
- संयम और साहस का पर्व
- सती अनसूया
- सरिता
- सावन में सूनी साँझ
- हरसिंगार
- हल चलाता बुद्ध
- ज़ख़्म जब राग बनते हैं
- किशोर साहित्य कविता
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- सांस्कृतिक आलेख
-
- कृतज्ञता का पर्व पितृपक्ष
- कृष्ण का लोकरंजक रूप
- चैत्र नवरात्रि: आत्मशक्ति की साधना और अस्तित्व का नवजागरण
- जगन्नाथ रथ यात्रा: आस्था, एकता और अध्यात्म का महापर्व
- न्याय और अन्याय के बीच
- बलराम जयंती परंपरा के हल और आस्था के बीज
- बुद्ध पूर्णिमा: शून्य और करुणा का संगम
- योगेश्वर श्रीकृष्ण अवतरणाष्टमी
- रामनवमी: मर्यादा, धर्म और आत्मबोध का पर्व
- लोक आस्था का पर्व: वट सावित्री पूजन
- विजयदशमी—राम और रावण का द्वंद्व, भारतीय संस्कृति का संवाद
- विश्व योग दिवस: शरीर, मन और आत्मा का उत्सव
- श्राद्ध . . . कृतज्ञता और आशीर्वाद का सेतु
- साहित्यिक आलेख
- कहानी
- लघुकथा
- चिन्तन
- सांस्कृतिक कथा
- ऐतिहासिक
- ललित निबन्ध
- शोध निबन्ध
- ललित कला
- पुस्तक समीक्षा
- कविता-मुक्तक
- हास्य-व्यंग्य कविता
- गीत-नवगीत
- विडियो
-
- ऑडियो
-