नेपथ्य में

15-07-2025

नेपथ्य में

अमरेश सिंह भदौरिया (अंक: 281, जुलाई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

मंच पर जो बोलते हैं, 
वो नहीं जानते—
कि शब्दों का वज़न
नेपथ्य में उठाया गया था। 
 
जो मुस्कराहटें दी जाती हैं सबसे सामने, 
वो किसी ने आँसू पीकर सँवारी थीं—
चुपचाप, बिना श्रेय के। 
 
घर में जो सबसे ज़्यादा बोलते हैं, 
वो नहीं सुनते
उनकी ख़ामोशी, 
जो रसोई से बैठक तक
हर कोना बुहारती है, 
बिना मंच की तालियों के। 
 
संयुक्त परिवार का वो सबसे बुज़ुर्ग, 
जो अब कोने में रहता है, 
कभी वही था
जिसकी छाँव में
पूरा आँगन फलता-फूलता था। 
 
आज जब रिश्ते ‘स्क्रीनशॉट’ बनते हैं, 
 
नेपथ्य में अब भी कोई
रोटियों की संख्या गिनता है, 
ये देखे बिना कि
इंस्टाग्राम पर ‘डिनर’ कितना सुंदर दिखा। 
 
नेपथ्य में हैं—
माँ की अधूरी नींद, 
पिता की टूटी चप्पल, 
भाई की छोड़ी हुई नौकरी, 
बहन का त्यागा हुआ सपना। 
 
परदे के आगे
 
जो दिखता है, 
वो केवल एक दृश्य होता है, 
ज़िंदगी नहीं। 
 
और एक दिन
जब मंच ढह जाएगा—
नेपथ्य में खड़ा वही सच
सबसे ऊँचा दिखाई देगा। 

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