शक्ति का जागरण

01-10-2025

शक्ति का जागरण

अमरेश सिंह भदौरिया (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

देवी, 
तुम न केवल आराध्य हो, 
तुम स्वयं
उस चेतना का प्रतिरूप हो
जो इस ब्रह्मांड को
धारण किए है। 
 
आरती के स्वर
सिर्फ़ अनुष्ठान नहीं, 
वे मेरे भीतर के
अनाहत नाद से
मेल खाते हैं। 
 
तुम्हारी मूर्ति
मिट्टी से बनी है, 
पर तुम्हारा स्वरूप
तत्वज्ञान की उस अग्नि से
जिसे ऋषियों ने
साधना में पाया। 
 
शक्ति का जागरण
भोग से विरक्ति नहीं, 
बल्कि
भोग में भी
संतुलन खोजने की
सजगता है। 
 
यह पर्व
मुझसे कहता है—
उपासना बाहर नहीं, 
भीतर की यात्रा है; 
देवी का वास
गगन में नहीं, 
अंतर की आत्म-दीक्षा में है। 
 
जब मैं
अपने अहंकार को
तुम्हारे चरणों में रखता हूँ, 
तो वही
मेरा प्रसाद बन जाता है, 
और तभी
तुम्हारी करुणा
मेरे कर्म में
परिवर्तित होकर उतरती है। 
 
तुम शक्ति नहीं, 
तुम चेतना हो; 
और मैं
तुम्हारे जागरण से ही
अपना स्वरूप
पहचान पाता हूँ। 

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