शाम ढले मधुशाला
अमरेश सिंह भदौरियासुबह-सुबह मंदिर में दर्शन
शाम ढले मधुशाला,
तन-से बगुला वरन बने
मन-कौवे-से भी काला,
आदर्शों में पूज रहे
गाँधी जी की तस्वीरें
मौक़ा मिलने पर करते,
घोटाले में घोटाला,
हमको भी अपना कहते
तुमको भी अपना कहते,
सबसे जोड़ रहे हैं रिश्ता
रोटी-बोटी वाला,
गाँव-गाँव में गली-गली में
घर-घर जाकर कहते,
मैंने भी हाथो में थामी
लोकतंत्र की माला,
सपथ-सत्य की खाते
लेकर मन-में सेवा भाव,
अपनी हर चालों में चलते
पाशा-शकुनी वाला,
अपने चारों ओर लगे हैं
प्रहरी वर्दी-वाले,
पर ख़ुद को कहते
मैं हूँ तेरा-रखवाला,
मौसम का अनुमान लगाते
वो पुरवाई के रुख़ पर,
सपनों की फूली फुलवारी में
"अमरेश" गिरा कब पाला।
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